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________________ ६५४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ प्रत्येक व्यवहार उनकी कुलीनता के द्योतक हैं।" । राजा ने अपनी पुत्री को विदा किया। मन में वही रखा जो मन्त्री के साथ सोचा था..-वसुमित्र द्वारा थोपे गये मिथ्या आरोप पर विश्वास किये सुमित्र के वध की व्यवस्था को यथावत् रखा। राजधर्म और कर्तव्य के नाते औचित्य तो यह था कि राजा मामले की, संशयापन्न स्थिति की भलीभाँति खोज, छान-बीन तथा जांच-पड़ताल करता, करवाता, वस्तुस्थिति का पता लगवाता, फिर निर्णय लेता। पर, भावावेश में राजा ने वैसा कुछ नहीं किया। अपने षड्यन्त्र का स्वयं शिकार संयोगवश तभी वसुमित्र सुमित्र के घर पहुंचा। सुमित्र कहीं जाने की तैयारी में था। उसे वैसा करते देख वसुमित्र ने पूछा- "मित्र ! मैं तो तुमसे मिलने आया हूँ और तुम यहां से निकलने की तैयारी कर रहे हो, क्या बात है?" - सुमित्र-“मित्र ! आज तुमको भी मेरे साथ चलना होगा । राज सभा में एक नाटक का आयोजन है। मैं वहाँ आमन्त्रित हूँ। यद्यपि तुमने मुझे अब तक रोके रखा था कि मैं अपने ससुर राजा सिंहरथ से तुम्हारा अपने मित्र के रूप में परिचय कराऊँ, पर आज मैं तम्हें अपने मित्र के रूप में नाटक दिखलाने अवश्य ले जाऊँगा।" वसुमित्र ने अपने कपड़ों पर नजर डाली और बोला- "ये कपड़े...!! मैं कैसे जाऊँगा? कपडे बुरे नहीं हैं, किन्तु तुम्हारे साथ जाऊं, इस योग्य भी नहीं हैं।" सुमित्र - "कपड़ों के लिए क्या बात है, तुम ये मेरे कपड़े पहन लो और चलो।" कैसा योग बन रहा है-“वसुमित्र ने सुमित्र की पोशाक पहन ली। उसे उस पोशाक में देखकर कोई भी नहीं कह पाता कि यह राजा का जामता सुमित्र नहीं है। दोनों राजसभा में गये । नाटक का प्रदर्शन यथासमय प्रारंभ हुआ। दर्शकों के कक्ष में हलकी सी रोशनी थी। मंच पर नृत्य एवं गान चल रहा था। मन्त्री के छद्मवेषी अनुचरों ने वसुमित्र को राजजामाता सुमित्र समझा और उसकी हत्या कर डाली।" __ ज्योंही यह घटित हुआ, सभा में कोलाहल मच गया। राजा ने समझा, उसका जामता मारा गया। एकाएक अपनी पुत्री के वैधव्य का विकराल दृश्य उसी आँखों के सामने उपस्थित हो गया, जिसकी कल्पना मात्र से वह अवाक् रह गया। यह करवा तो दिया किन्तु वह अन्तर्वेदना से चीख उठा- "हाय मेरी पुत्री विधवा हो गई।" ___ मदन रेखा पिता के पास दौड़ी आई और बोली- पिताजी ! कौन विधवा हो गई ? किसकी पुत्री विधवा हो गई ? आप किसकी बात कर रहे हैं ?" राजा-"तेरे पति की हत्या हो गई बेटी ! बहुत बुरा हुआ।" राजकुमारी-"आप सामने देखिए न, आपके जामाता उधर बैठे हैं, शोक से रो रहे हैं । अभी जिसका वध हुआ है, वह इनका मित्र था, इन्हीं के नगर का एक श्रेष्ठि पुत्र था। व्यापारार्थ यहाँ आया था। पहले इन्हीं के साथ व्यापार करता रहा था।" राजा सिंहरथ को सारी घटना का, वस्तुस्थिति का ज्ञान हुआ। वह यह परिचय प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हुआ कि उसका जामाता श्रीपुर के श्रेष्ठी समुद्रदत्त का सौभाग्यशाली पुत्र है । वसुमित्र ने उसका अनिष्ट करने के लिए उस पर मनगढन्त, मिथ्या आरोप लगाया। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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