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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
अब मेरे साथ चलकर क्या करोगे ? व्यापार तो धन से होता है।"
सुमित्र ने कहा-“वसुमित्र! तू जीत गया, मेरी सम्पत्ति, सामान, माल-सब तुम्हारे अधिकार में आ गया, इसे भी धर्म का ही, सत्य का ही, प्रताप मानो। मैं धर्म पर अडिग रहा, तुमको सारा धन, वैभव सम्हला दिया। यदि मैं अनीति, असत्य और अधर्म पर उतर आता तो तुम्हें एक कौड़ी भी नहीं मिलती।" ।
___ "तुम क्या कहते हो, मैं स्वयं ही तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगा । अकेला जाऊँगा। अपने भाग्य की परीक्षा करूंगा।"
भाग्योदय : राजकन्या से विवाह
मत्र अकेला निकल पड़ा। उसका न संगी था और न कोई साथी । धर्म के सम्बल, साहस और धैर्य के साथ वह एकाकी अपने पथ पर आगे बढ़ता गया। संयोग ऐसा रहा, मार्ग में किसी सार्थवाह का सार्थ भी नहीं मिला, जिसके साथ वह आराम से किसी नगर में पहुँच पाता। पर, उसने हिम्मत नहीं छोड़ी, आगे बढ़ता गया। चलते, रुकते, ठहरते, आगे बढ़ते वह एक ऐसे वन में पहुँच गया, जो समुद्र के पास था।
सन्ध्या की स्वर्णिम वेला थी । सूर्य अस्तोन्मुख था । समुद्र में उसका प्रतिबिम्ब पड़रहा था। बड़ा भब्य एवं मनोज्ञ प्रतीत होता था। सुमित्र एक वट वृक्ष के नीचे बैठा प्रकृति, जगत् का सौन्दर्य निहार रहा था। उसने सोचा, ज्यों ही मेरे अशुभ कर्म परिमुक्त हो जायेंगे, मेरे जीवन में भी ऐसा ही सौन्दर्य और उद्योत प्रस्फुटित होगा। सुख और दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं। जैसे सुख के दिन चल गये, वैसे हो दुख के भी दिन चले जायेंगे, पुनः अच्छे दिन आयेंगे। संभव है, पहले से और अच्छे आएं । सुख एवं दुःख का कारण मानव स्वयं है, अतः वर्तमान स्थिति में न मुझे शोक है और न चिन्ता ही। साहस के साथ सब सहूंगा। वह नवकार मंत्र का उच्चारण करता हुआ वहीं सो गया। उसे नींद आ गई।
नींद के बीच सुमित्र की सहसा आँख खुली। उसे पेड़ पर बैठे कुछ पक्षी परस्पर बात करते प्रतीत हुए। पेड़ पर एक गरुड पक्षी का परिवार था। सुमित्र पशु पक्षियों की बोली समझता था। उसने उन पक्षियों की बातचीत पर कान दिया।
गरुड पक्षी के बच्चे ने अपने पिता से पूछा-'तात ! आज आपको अपने नींड में लौटने में बड़ा विलम्ब हआ। क्या कारण था ? आप कहां रुक गये ?"
गरुड ने कहा-"आज मैं सिंहल द्वीप में कुछ देर रुक गया। मैंने वहाँ एक विलक्षण घटना देखी । सिंहरथ नामक सिंहलद्वीप का राजा है। उसकी रानी का नाम पद्मावती है । उसके एक कन्या है। उसका नाम मदन रेखा है। वह रति के सदृश रूपवती है, सभी उत्तमोत्तम गुणों से युक्त है। इस समय वह नेत्र-पीड़ा से बहुत दुःखित है। अनेक कुशल चिकत्सकों ने भरसक प्रयत्न किया, पर, उसे नेत्र-पीड़ा से मुक्त नहीं कर सके। राजा ढोल बजवा कर यह घोषित करा रहा है कि मेरी पुत्री की नेत्र-पीड़ा को जो दूर कर देगा, उसे स्वस्थ कर देगा, मैं उसके साथ उसका विवाह कर दूंगा, अपना आधा राज्य उसे दे दूंगा। अब तक वैसा कोई पुरुष नहीं पहुंचा, जो उसे स्वस्थ कर पाता । राजकुमारी पीड़ा से बुरी तरह कराह रही है।"
पक्षि-शावक ने कहा-"तात ! आपको तो वनौषधियों-जड़ी-बूटियों का बड़ा ज्ञान है। राजकुमारी की नेत्र-पीड़ा कैसे दूर हो सकती है ?"
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