________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग) कथानुयोग-कपटी मित्र :प्रवंचना : कूट वा० जा. ६४६
पक्ष, विपक्ष में वाद-विवाद चल रहा है। अपने-अपने पक्ष उपस्थित कर हम आप लोगों से यह निर्णय लेना चाहेंगे कि कौन सा पक्ष प्रबल है तथा कौन सा दुर्बल । आप लोगों को जैसा उचित लगे, बताएं।"
___ गाँव वासी दोनों के मुंह ताकने लगे। उनमें से एक वृद्ध पुरुष ने कहा-"तुम दोनों अपना-अपना पक्ष उपस्थित करो। जैसी हमारी जानकारी और समझ है, उसके अनुसार हम लोगों को जैसा ठीक लगेगा, हम कहेगे।" ।
पहले वसुमित्र ने अधर्म के समर्थन में अपना पक्ष रखा--"बन्धुओ ! आज हम सब जगह यह प्रत्यक्ष देखते है कि जो चालाकी से, छल-कपट से दूसरों को ठगते हैं, धोखा देते हैं, वे सुखी हैं, मालामाल हैं। जो असत्य द्वारा, अनीति द्वारा, प्रवंचना द्वारा अपना काम बना लेते हैं, सब उन्हीं को सफल एवं सुयोग्य मानते हैं। वैसे लोगों के जीवन में कोई कमी नहीं रहती। यह अधर्म का ही प्रताप है । क्योकि ये सारे कार्य अधर्म पूर्वक ही सधते हैं, धर्म पूर्वक नहीं।"
एक वयोवृद्ध ग्रामीण बोला- "ठीक कहते हो भाई ! हम लोग तो आये दिन ऐसी घटनाएँ देखते हैं, पाप करने वाले लोग सुख से अपना जीवन चलाते हैं, धार्मिक कष्ट पाते हैं । इसी गांव में एक व्यक्ति है, जिसने चोरी से, बेईमानी से मेरी फसल काट ली। आज वह बहुत सुखी है। उसकी गायें, भैसे गेहूँ की बालें चरती हैं और मेरे बच्चों को भरपेट रोटी नहीं मिलती। धर्म का फल दुःख है, अधर्म का फल सुख है, यह मैं प्रत्यक्ष देखता रहा हूँ।"
____ सुमित्र ने धर्म के समर्थन में अपना पक्ष रखते हुए कहा-"भाइयो ! यह विषय जरा गहराई से समझने का है । भौतिक सुख, दुःख, सम्पत्ति, विपत्ति इन सबका कारण अपने कृत कर्म हैं । अभी जो सुख भोग रहे हैं, यह उनके पूर्वाचरित कर्मों का फल है। जब पुण्य क्षीण हो जायेंगे, तो ये सुख मिट जायेंगे। अभी जो बेईमानी, छल धोखा, असत्याचरण, हिंसा आदि दुष्कर्म करते हैं, उनका परिपाक होने पर दुःखात्मक फल भोगने होते हैं। दरअसल धर्म आत्मा का विषय है। उससे आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। वह ऐसी अनुपम शान्ति है, जो बाह्य पदार्थों से प्राप्त नहीं हो सकती। धर्म का अन्तिम फल नितान्त सुखप्रद है।"
सुमित्र की बात तो बड़ी सारगर्भित थी, किन्तु स्थूल दृष्टि से देखने वाले ग्रामीणों के मन में वह जमी नहीं । उनमें से एक किसान खड़ा हो कर बोला-“कर्म-फल की बात तुम कहते हो, उसे किसने देखा है ? आगे होने वाले फल कौन देखेगा? कब देखेगा? यह तो हम प्रत्यक्ष साफ़ साफ़ देखते हैं, पाप करने वाले सुख प्राप्त करते हैं तथा धर्म करने वाले दुःख भोगते हैं।"
इस प्रकार काफ़ी समय तक चर्चा चलती रही, ऊहापोह होता रहा, अन्ततः लोगों ने वसुमित्र के ही पक्ष का समर्थन किया। उन्होंने अधर्म के पक्ष को प्रबल माना, धर्म के पक्ष को दुर्बल माना।
ग्रामीणों के इस अभिमत का अर्थ समित्र की पराजय तथा वसमित्र की विजय था। तदनूसार वसुमित्र ने सुमित्र की समस्त सम्पत्ति और माल, जो भी उसके साथ था, अपने अधिकार में कर लिया, उसके सार्थ को अपने सार्थ में मिला लिया।
वसुमित्र सुमित्र से बोला- "देखा अधर्म का प्रभाव ! मैं जो कुछ था, उससे दुगुना हो गया तुम्हारे पास जो कुछ था, वह तुमने धर्म के नाम पर गंवा दिया। अब जाओ, धर्म के नाम की माला फेरो, धर्म द्वारा सुख भोगो। अब तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचा है।
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org