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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
वसुमित्र ने प्रत्युत्तर में कहा-"सुमित्र ! जो तुम्हारी दृष्टि में अधर्म है, वास्तव में जगत् में वही सुख का आधार है। उसमें रचे-पचे लोग सुख पाते हैं। धर्म के लिए, सत्य के लिए जूझने वाले सदा दु:खी दिखाई देते हैं।"
बहस आगे बढ़ी। दोनों मित्र इस बात पर जोर देने लगे कि अपना-अपना पक्ष प्रमाणित किया जाए-सिद्ध किया जाए।
इस बीच वसुमित्र बोला- "यह विषय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। हम इस पर केवल शुष्क चर्चा नहीं करेंगे। हमें इसमें जय-पराजय की शर्त रखनी होगी।"
सुमित्र-“बोलो, वसुमित्र! तुम क्या शर्त रखना चाहते हो?"
वसुमित्र-“यदि मेरा पक्ष प्रबल रहा, तुम्हारा पक्ष दुर्बल रहा तो तुम्हारी सारी सम्पत्ति, माल मेरा हो जायेगा और तुम्हारा पक्ष प्रबल रहा, मेरा पक्ष निर्बल रहा तो मेरी सारी सम्पत्ति और माल तुम्हारा हो जायेगा।"
यदि हिम्मत हो तो बात आगे बढ़ाओ।
सुमित्र-"मुझे स्वीकार है।" ... वसुमित्र- "मुझे भी स्वीकार है।"
सुमित्र - "हमारा मध्यस्थ कौन होगा ? किसका पक्ष प्रबल है, किसका निर्बल है, कौन विजेता है, कौन पराजित है, यह निर्णय कौन देगा ?"
वसुमित्र ने बात को और पक्की करने की दृष्टि से कहा-“सुमित्र ! एक बार फिर सोच लो, शर्त बड़ी है। हमारी हार-जीत के बीच में हमारी मित्रता नहीं आयेगी। इसमें जो भी जीतेगा, सारी सम्पत्ति उसकी हो जायेगी, पराजित को इसमें जरा भी ननु-नच नहीं करना होगा।"
सुमित्र-"किसी भी तरह का सन्देह मत करो, हमारी शर्त पक्की है।" दोनों ने हाथ मिलाया, शर्त पर वचनबद्ध हुए।
वसुमित्र बोला- "माध्यस्थ्य या निर्णय के सम्बन्ध में ऐसी बात है, अगले दिन मार्ग में जो भी गाँव पड़ेगा, वहाँ के लोगों को हम मध्यस्थ बनायेंगे। हमारे दोनों के पक्ष में सुनने के बाद वे जो भी निर्णय देंगे, हम सहर्ष स्वीकार करेंगे।"
सुमित्र बोला- "बहुत अच्छा, हम ऐसा ही करेंगे।"
प्रातःकाल हुआ। काफ़िला चला । सायंकाल वे एक गांव में पहुँचे। कच्चे मकान थे, गाँव छोटा सा था।
वसुमित्र के मन में पहले से ही यह षड्यन्त्र था कि गांव वाले धर्म, अधर्म के सम्बन्ध में गहराई से कुछ जानते नहीं हैं। वे स्थूल दृष्टि के लोग हैं। मैं उन्हें अधर्म के बाहरी प्रभाव की बातें बताकर आसानी से अपने पक्ष में कर लूंगा।
सुमित्र सरल था। वह तो सभी को अपने समान ही भद्र एवं धार्मिक मानता था। उसने मन ही मन कहा-"पक्ष धर्म का ही प्रबल रहेगा । धर्म के शाश्वत शान्तिप्रद, सुखप्रद स्वरूप से कौन इनकार करेगा।"
सुमित्र एवं वसुमित्र ने उस गाँव के लोगों को बुलाया वृद्ध, तरुण सभी एक जगह एकत्रित हुए।
वसुमित्र गांव वासियों से बोला-"हम दोनों मित्र हैं। धर्म और अधर्म पर हमारा
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