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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-कपटी मित्र : प्रवंचना : कूट वा० जा० ६४५
१८. कपटी मित्र : प्रवंचना : कूट वाणिज जातक
कथा-साहित्य में ऐसे मित्रों के अनेक आख्यान प्राप्त हैं, जिन्होंने अपने विश्वस्त और ईमानदार मित्रों के साथ विश्वासघात किया, छल एवं षड्यन्त्र द्वारा उनका धन हड़पने का प्रयत्न किया। ऐसी कहानियाँ अधिकांशतः वाणिक-मित्रों की मिलती हैं। वे साथ में व्यापार करते हैं अथवा व्यापारार्थ प्रयाण करते हैं। व्यापार में धनार्जन करते हैं। लोभी मित्र के मन में पाप जागता है। वह ऐसे हथकंडे अपनाता है, जिससे वह दूसरे मित्र का धन हड़प सके । अन्ततः रहस्य प्रकट हो जाने पर वह किस प्रकार लांछित और लज्जित होता है-ऐसे तथ्य इन कथाओं में मनोरंजक रूप में आख्यात हुए हैं।
जैन साहित्य में ऐसी बहुत कहानियाँ हैं । आवश्यक चूणि तथा धर्मरत्न प्रकरण टीका में वर्णित दो जैन कथानक यहाँ उप स्थापित हैं। पहले में एक ऐसे विश्वासघाती मित्र का वर्णन है, जो सारा का सारा अपने हिस्से का और अपने मित्र के हिस्से का गड़ा खजाना हड़प लेने के लिए धोखा करता है। गुप्त रूप में सारा खजाना निकाल लेता है, उसके स्थान पर कोयले रख देता है । "शठे शाठ्यं समाचरेत्" के अनुसार सच्चा मित्र मी एक ऐसा नाटक रचता है कि उसकी सारी पोल खुल जाती है।
दूसरे कथानक के रूप में सुमित्र एवं वसुमित्र नामक ऐसे दो मित्रों का वर्णन है, जो एक साथ व्यापार करने जाते हैं।
छली वसुमित्र रास्ते में ही धर्म-अधर्म की चर्चा का प्रसंग खड़ा कर, शर्त रख जालसाजी द्वारा सुमित्र का सारा धन हड़प लेता है।
सुमित्र भाग्यशाली था। सारा धन तो चला गया, किन्तु भाग्य साथ देता है। उसका सिंहल की राजकुमारी के साथ विवाह हो जाता है। धन-वैभव, मान-सम्मान की कोई कमी नहीं रहती। वसुमित्र वहाँ आ पहुंचता है। सुमित्र की सम्पत्ति देखकर वह ईर्ष्या से जलभुन जाता है। उसे मरवाने का षड्यन्त्र रचता है, किन्तु दैवयोग से उसमें वह स्वयं ही फंस जाता है, बेमौत मारा जाता है।
बौद्ध वाड्मय के अन्तर्गत कूटवाणिज नामक दो जातकों में वर्णित इसी प्रकार के दो आख्यान यहाँ उपस्थापित हैं। पहले में एक ईमानदार भला मित्र अपने दूसरे मित्र के यहाँ धरोहर के रूप में लोहे के पाँच सौ फाल रखता है। दूसरा विश्वासघाती मित्र उन्हें चूहे खा गये, ऐसा बहाना बनाकर हड़प जाना चाहता है।
_दूसरे में एक धूर्त बनिया अपने मित्र को ठगने के लिए अपने पिता को एक वृक्ष के कोटर में छिपाकर अपने पक्ष में देव-वाणी उद्घोषित कराने का जाल रचता है।
दोनों ही जगह उन छली मित्रों की सच्चे मित्रों द्वारा किये गये तत्समकक्ष बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार से पोल खुल जाती है।
ये कथाएँ रोचक होने के साथ-साथ बड़ी शिक्षाप्रद हैं।
कपटी मित्र दो मित्र
दो मित्र थे। एक बार का प्रसंग है, उन्हें किसी स्थान पर गड़े धन का खजाना
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