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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ गृहपति, निगम एवं जनपद के लोगों के साथ धर्म का व्यवहार-धर्मानुरूप वर्तन करो। ऐसा करने से देह त्याग कर तुम सगति प्राप्त करोगे, स्वर्ग प्राप्त करोगे।"
इस प्रकार राजा को बुद्धलीला-अन्तर्गत धर्मोपदेश देकर वह कुछ दिन उद्यान में रहा। फिर मग-युथ के साथ वन में चला गया। उस मगी ने फल जैसे सुकमार पुत्र को जन्म दिया। जब वह मग-शावक खेलता-खेलता शाखा मग के पास चला जाता, तब उसकी माता उसे रोकती और कहती-"बेटा ! फिर कभी उसके पास मत जाना, केवल निग्रोध मृग के ही निकट जाना।"वह मगी इस प्रसंग पर निम्नांकित गाथा कहती
"निग्रोध मेव सेवेय्य, न साखमुख संवसे । निग्रोधस्मि मतं सेय्यो, यञ्चे साखस्मि जीवितं ॥"
"बेटा ! तू तथा अन्य जो भी अपना हित चाहे, निग्रोध मग की ही सेवा करे-उसी की सन्निधि में रहे, शाखा मृग के पास संवास न करे-न रहे। शाखा मृग के आश्रय में जीने की अपेक्षा निग्रोध मृग की सन्निधि में मरना कहीं श्रेयस्कर है-उत्तम है।"
कुछ ही समय में एक समस्या खड़ी हो गई। सभी मग अभय-प्राप्त थे। वे लोगों के खेत खाने लगे। किसान यह जानते हुए कि ये अभय-प्राप्त मृग हैं, उन्हें मारते नहीं, भगाते नहीं, लोग राजा के प्रांगण में एकत्र हुए। उन्होंने इस सम्बन्ध में शिकायत की। राजा ने कहा- "मैंने प्रसन्नता पूर्वक निग्रोध मृग को सबके लिये अभय-दान का वर दिया है, मैंने प्रतिज्ञा की है । मैं अपने राज्य का त्याग कर दूं, यह मुझे स्वीकार है किन्तु मैं अपनी प्रतिज्ञा भग्न नहीं कर सकता। मेरे राज्य में किसी मृग को मारने की छूट नहीं है । जाओ।"
निग्रोध मृग ने उपरोक्त बात सुनी। उसने सब मृगों को बुलाया, इकट्ठा किया और उन्हें समझाया कि अब मे वे किन्हीं के खेतों को न खाएं। मृगों ने यह स्वीकार किया। फिर निग्रोध मृग ने मनुष्यों को कहलाया कि अब से वे रक्षा हेतु खेतों के बाड़ न लगाएं। वे केवल अपने अपने खेतों को घेर कर निशानी के रूप में पत्तों की झंडी लगा दें। तब से पत्तों की झंडी लगाने का क्रम चला। ऐसा हो जाने पर कोई भी मृग निशानी के रूप में बँधी पत्तों की झण्डी को नहीं लांघता । बोधिसत्त्व का उन्हें ऐसा ही उपदेश था ।
इस प्रकार मग-समूह को उपदेश देकर, अपने आयुष्य-प्रमाण जीवित रह बोधिसत्त्व स्वकर्मानुरूप परलोकवासी हुए। बोधिसत्त्व के उपदेशानुरूप पुण्य कार्य करता हुआ राजा मी अपने आचीर्ण कर्मों के अनुसार परलोकवासी हुआ।
__शास्ता ने कहा- "इस प्रकार मैंने केवल इस जन्म में ही इस स्थविरी तथा कुमार काश्यप को आश्रय नहीं दिया है, पूर्व-जन्म में भी इन्हें आश्रय दिया है।"
शास्ता ने बताया--- "देवदत्त उस समय शाखा मृग था। देवदत्त की परिषद् शाखा मृग की परिषद्-मंडली थी। स्थविरी उस समय मृगी थी। स्थविरी-पुत्र कुमार काश्यप उस समय मृग-पुत्र था। स्थविर आनन्द उस समय राजा था। निग्रोध मृग के रूप में तो मैं ही उत्पन्न हुआ था।
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