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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
लोगों ने आपस में विचार किया-यह राजा हर रोज हमारा काम छुड़वा-देता है। हमारा काम रुकता है -काम में बाधा आती है। अच्छा हो, हम उद्यान में घास बो दें, जल रख दें। बहुत से मगों को उद्यान में प्रविष्ट करा दें। फिर द्वार बंद कर दें, उन्हें राजा को सौंप दें। यह विचार सबको अच्छा लगा। उन्होंने अपना विचार क्रियान्वित किया। उद्यान में घास बोया, जल रखा। यथा समय घास उग आया। फिर वे नगर के बहुत से लोगों को साथ लिए, बहुत प्रकार के शस्त्र लिये वन में प्रविष्ट हुए। उन्होंने मृगों को नियंत्रित करने हेतु योजन भर स्थान को घेरा। फिर घेरे को क्रमशः कम करते गये। अन्त में उन्होंने निग्रोध मृग और शाखा मृग के आवास-स्थानों को घेर लिया। वहाँ मृग-समूह थे। मृगों को देखकर वे लोग पेड़ों, लताओं-कुओं एवं भूमि को मुद्गरों से पीटने लगे । इधर-उधर जो मृग छिपे थे, उन्हें भी यों कोलाहल द्वारा बाहर निकाला। वे तलवार, शक्ति, धनुष आदि शस्त्रास्त्र लिये हुए थे, प्रहारोद्यत से थे। मृग-समूह भयभीत हो गये। इस प्रकार उन लोगों ने शोर
और शस्त्र-मय के सहारे मृगों को उद्यान में प्रविष्ट करा दिया। उद्यान का द्वार बंद कर दिया।
तदन्तर वे राजा के पास आये और निवेदन किया-"राजन् ! प्रतिदिन आपके साथ जाते रहने से हमें अपने कार्य में बाधा होती है । इसलिए हमने वन के मृगों को आपके उद्यान में प्रविष्ट करा दिया है । अब से आप यथेच्छ उनका शिकार करें, मांस खाएं। यों राजा से निवेदित कर, उनसे आज्ञा लेकर वे वापस अपने स्थानों को लौट गये।
राजा उद्यान में आया, मगों को देखा । उनमें निग्रोध मृग तथा शाखा मृग को, जो स्वर्ण जैसे वर्ण के थे, अभय-दान दिया। तब से निरन्तर कभी राजा स्वयं आता, एक मग का शिकार कर ले जाता, कभी उसका पाचक आकर मृग मार ले जाता। मृग ज्यों ही धनुष को देखते, डर कर भाग छूटते। दो-तीन आधात खाकर व्यथित होते, क्षत-विक्षत होते और मर जाते । मग-समूह ने बोधिसत्व को, जो निग्रोध मृग के रूप में थे, यह बात कही।
एक-एक बारी-बारी से
निग्रोध मृग ने शाखा मग को बुलाया और कहा- “सौम्य ! प्रति दिन मृग मारे जा रहे हैं । मरना तो अवश्य है ही, अतः अब से कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि मृगों पर बाण द्वारा वार न किये जाएं। धर्म-गण्डिका स्थान गलच्छेद करने के स्थान पर मृगों के एक-एक कर स्वयं पहुँच जाने की बारी बांध दी जाए। एक दिन तुम्हारे यूथ में से एक मृग जाए, एक दिन मेरे यूथ में से एक मृग जाए। यह क्रम निरन्तर चलता रहे । शाखा मृग ने इसे स्वीकार कर लिया।
__ इस व्यवस्था के अन्तर्गत जब जिस मग की बारी आती, वह धर्म-गण्डिका पर जाकर वहां अपना मस्तक रखे पड़ा रहता । पाचक वहां आता और उसे निहत कर ले जाता।
गभिणी मृगी की बारी
एक दिन शाखा मृग के यूथ में से एक ऐसी मृगी की बारी आई, जो गर्भिणी थी। वह अपने यूथ पति शाखा मग के पास जाकर बोली-"स्वामी! मैं गर्भिणी हूँ। बच्चा उत्पन्न होने के बाद हम दो प्राणी बारी-बारी से जायेंगे । तब तक मुझे मत भेजिए । मेरे स्थान पर आज किसी और को भेज दीजिए।" शाखा मृग बोला- 'मैं तेरे स्थान पर और किसी को
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