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arre और frftee एक अनुशीलन
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१५. गन्ध-कथा, १३. ज्ञाति-कथा, १४. पान- पाथा, १५. प्राम-कथा, १६. निगम-कथा १७. नगर-कथा, १५. जनपद-कथा तथा १९. स्त्री-कथा ।'
पाप का फल
अशुभ कर्मों का फल अशुभ होता है। पड़ता है। भौगे बिना कोई कमी से छूट नहीं जाब के अनुसार विविध प्रकार का होता है। मैं भोगना पड़ सकता है । जिस प्रकार चोरी बाला चोर पकड़े जाने पर अपने अपराध के फलस्वरूप दण्ड भोगता है कष्ट मेलता है, उसी प्रकार पाप कर्म करने वाला जीव इस लोक में तथा परलोक में अपने पापों का फल भोगता है। फल भोगे बिना अपने किये हुए कमी से मुक्ति छुटकारा नहीं मिलता ।
चौरी करने के लिए सेंध लगाता हुआ पापथम-पापानुरत चोर पकड़े जाने पर जैसे मारा जाता है, उसी प्रकार पापकारी पुरुष अपने पापों के परिणामस्वरूप इस लोक में और परलोक में दुर्गति पाता है, तकलीफ पाता है
अशुभ कर्म करनेवाले को अशुभ फल भोगना सकता। पापों का फल उनकी बम्धावस्था एवं इसे ऐहिक तथा पारलौकिक दोनों योनियों करने के लिए किसी के मकान में सेंध लगाने
माना
afe मनुष्य बुरी प्रवृतियों में फैलता है। तो वह स्वयं अपने हाथों मरमा विनाश करता है । शत्रु जैसा नहीं कर सकता उससे कहीं अधिक वह खुद अपना बिगाड़ करता है। यह स्वर जैन एवं बौद्ध दोनों ही संस्कृतियों में मुखरित हुआ है।
अपनी दुरात्मा दुष्प्रवृत्त युवतियों में संलग्न बारमा जितनी हानि करती है, कण्डच्छेष करनेवाला---गर्दन काटनेवाला शत्रु भी उतनी हानि नहीं करता । दधातूपअपने पर बधा न कर अपना हित में सोच दुराचार में प्रवृत पुरुष मृत्यु के मुंह में पड़ने पर
१. भंयुत्तरनिकाय १०.६६
१. ते जहाँ संधि नहीं ए सकसुणा किल्चर पानकारी । एवं पथ पैच वह चलोष, कठीण कम्माण ण सुक्ल अस्थि ||
उत्तराध्ययन सूत्र ४.३ चोरी यथा सन्धि महतो, कम्युना हृष्यति पापधम्मौ । एवं पता वै वरम्हि लोके, कम्युन हृष्यति पापम्मी ||
गाव
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