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तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
तत्त्व
"गृहपतिपुत्र ! आर्य श्रावक न छन्द मार्गानुगामी होता है, न द्वेष-मार्ग पर जाता है, न मोह के मार्ग पर जाता है और न भय-मार्ग पर ही जाता है।
छः अपाय-मुख-१. मदिरापान, २. सन्ध्या के समय चौराहे पर भ्रमणघूमना, ३. नृत्य, खेल, ४. द्यूत तथा ५. दुर्जन के साथ मैत्री एवं ६. आलस्य युक्त
प्रवृत्ति ।"
विकषा
निरर्थक, प्रयोजनरहित तथा काम, लोभ, मोह आदि से संयुक्त वार्तालाप विकथा कहा जाता है। जैन तथा बौद्ध-शास्त्रों में विकथा का वर्णन, भेद, प्रभेद आदि तात्पर्यात्मक दृष्टि से काफ़ी समानता लिये हैं। विकथा के चार प्रकार बतलाये गये हैं- १. स्त्री-कथा, २. भक्त-कथा, ३. राज-कथा तथा देश-कथा।।
स्त्री-कथा के चार भेद हैं--१. स्त्रियों की जाति-कथा, · २. स्त्रियों के कुल की कथा, ३. स्त्रियों के रूप-सौन्दर्य की कथा तथा ४. स्त्रियों के नेपथ्य-वेषभूषा, परिधान आदि की कथा।
__ भक्त-कथा के चार प्रकार हैं-१. आवाय-कथा--रसोई के सामान की कथा, २. निर्वाय-कथा-पक्व या अपक्व अन्न, व्यंजन आदि की कथा, ३. आरंभ-कथा--रसोई बनाने के लिए अपेक्षित सामान, अर्थ आदि की कथा तथा निष्ठान-कथा-रसोई में प्रयुक्त सामान, अर्थ आदि की कथा ।
देशकथा के चार प्रकार हैं-१. देश-विधि कथा-विभिन्न देशों में प्रचलित विधिविधानों की कथा, २. देश-विकल्प-कथा--विभिन्न देशों के दुर्ग, परकोटे आदि की कथा, ३. देशच्छन्द-कथा-विभिन्न देशों में प्रवृत्त विवाहादि से सम्बद्ध प्रथाओं की कथा तथा ४. देश-नेपथ्य-कथा-विभिन्न देशों में प्रचलित नेपथ्य-~-वेषभूषा, परिधान आदि की कथा।
राज-कथा के चार प्रकार हैं-- १. राज-अतियान-कथा- राजा के नगर-प्रवेश के समायोजन की कथा, २. राज-निर्याण-कथा--युद्धादि हेतु राजा के नगर से बाहर प्रयाण करने की कथा ३. राज-बल-वाहन-कथा-राजा की सेना सिपाही, वाहन आदि की कथा, ४. राज-कोष-कोष्ठागार- कथा-राजा के कोष, अन्न-मण्डार आदि की कथा।
बौद्ध-वाड्मय में विकथा को तिरच्छान कहा गया है। उसके अनेक भेद हैं१. राज-कथा, २. चोर-कथा, ३. महामात्य-कथा, ४. सेना-कथा, ५. भय-कथा, ६. युद्धकथा, ७. अन्न-कथा, ८. पान-कथा, ६. वस्त्र-कथा, १०. शयन-कथा, ११. माला-कथा
१. दीघनिकाय, पथिक वग्ग, सिगोलावाद सुत्त ३.८ २. समवायांग ४.१ ३. स्थानांग ४, सूत्र २४१-२४५
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