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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-सिंह और शशक : निग्रोध मृग जातक ६३५ १७. सिंह और शशक : निग्रोध मग जातक भारतीय कथा-साहित्य में पशु-पक्षियों की कहानियों का बड़ा सुन्दर समावेश है। साहित्य के इतिहास से यह स्पष्ट है, पाठकों ने इन कहानियों में बड़ा रस लिया । यही कारण है, पचतंत्र जैसा कथा-ग्रंथ जिसमें पशु-पक्षियों की कहानियों का वैपुल्य है, विश्व भर में समाहत, प्रसृत और अनेकानेक भाषाओं में अनूदित हुआ। जैन एवं बौद्ध-वाङ्मय में ऐसी कथाएँ बहुत हैं। जातक कथाओं में अनेक स्थानों पर बोधिसत्त्व द्वारा पशु-पक्षियों की योनि में जन्म लेने का उल्लेख है, जहाँ वे एक उत्तम, आदर्श पात्र के रूप में वणित हैं। व्यवहार भाष्य और वृति में एक सिंह और शशक की कथा है। अन्यत्र भी यह कथा अनेक भाषाओं में प्राप्य है। सिंह द्वारा स्वच्छन्द, अनियन्त्रित मग-संहार रोकने हेतु मृग सिंह को इस बात पर सहमत कर लेते हैं कि वे नित्य उसके पास एक-एक प्राणी भेजते रहेंगे, वह मृगवधार्थ स्वयं न आए। एक बार का प्रसंग है, एक शशक की बारी आई । शशक ने अपनी बुद्धिमत्ता द्वारा सिंह से सदा के लिए मगों का पीछा छुड़ा दिया। उसने चतुराई से सिंह को एक कुएं में उसकी परछाई दिखला कर, उसे दूसरा सिंह बताकर उत्तेजित कर दिया। सिंह ने कुएं में छलांग लगा दी। निग्रोध-जातक में भी इसी आशय की कथा है। यह कथा एक अन्तिम शरीरवर्तमान शरीर या जीवन के अनन्तर निर्वाण प्राप्त करने के संस्कार युक्त उत्तम शीलवती श्रेष्ठि-कन्या की सन्दर्भ कथा के साथ वहाँ उपस्थित है। उस कथा में सिंह के स्थान पर हिंसक पात्र मृग मांस-लोलुप राजा है। वह हर रोज मृगों का अंधाधुंध वध करता है। अनन्त: प्रतिदिन एक-एक मृग राजा को भेजे जाने का समझौता होता है। मृगों के भेजे जाने का क्रम चलता है। एक दिन एक गाभिन मृगी की बारी आती है। उसके इस सुझाव पर कि उसके पेट में बच्चा है, जिसका जन्म हो जाने के पश्चात् वे दोनों अपने समय पर मरने को जायेंगे, उसे गभिणी की अवस्था में न भेजा जाए, बोधिसत्त्व, जो यूथपति निग्रोध मृग के रूप में उत्पन्न थे करुणावश उस गाभिन हरिणी के बदले स्वयं जाते हैं। उनके क्षमा, मैत्री एवं करुणापूर्ण जीवन से प्रभावित राजा उनके विनयाचार से प्रेरणा प्राप्त कर समस्त मृगों को अभय-दान दे देता है । मृगों का यों उससे सदा के लिए छुटकारा हो जाता है। बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती, निग्रोध मृग के अनुरोध पर राजा चतुष्पद, खेचर एवं जलचर-सभी प्राणियों को अमय दान दे देता है। इस प्रकार निग्रोध मग के रूप में विद्यमान बोधिसत्त्व की प्रेरणा से राजा अहिंसा एवं करुणाशील जीवन स्वीकार कर-लेता है। ___ बारी-बारी पशु भेजने की प्रक्रिया, जो व्यवस्थित जीवन-पद्धति से जुड़ी है तथा हिंसोद्यत सिंह एवं राजा से छुटकारा कथा का प्रमुख कथ्य है, जो दोनों में उपस्थित है। निग्रोध जातक गत कथा विस्तीर्ण है। उसमें भाव-प्रेषणीयता की सामग्री पर्याप्त रूप में विद्यमान है। सिंह और शशक की कथा में शशक के चातुर्य के कारण वन के जीवों को सिंह से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_05
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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