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६३४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :३ जिसके सहारे तुम सुन्दरता के मोह से छूट जाओगी, सत्य का साक्षात्कार करोगी।"१
सम्यक् बोध : उद्गार
सुन्दरी नन्दा ने भगवान् का यह उपदेश बड़ी श्रद्धा से सुना। उसे सम्यक् बोध प्राप्त हुआ। उसने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा- 'मैंने शास्ता का उपदेश श्रवण किया। अतन्द्रित होकर-प्रमाद रहित होकर मैंने उस पर चिन्तन-मन्थन किया। इस देह का जो वास्तविक स्वरूप है, मैंने यथावत् रूप में बाह्य तथा आभ्यन्तर उसे वैसा ही पाया, अनुभव किया।
इस शरीर के प्रति मेरे मन में निर्वेद-वैराग्य उत्पन्न हुआ, मैं राग से छूट गई, मैंने शरीर से अपना ममत्व तोड़ दिया।
“मैं पुरुषार्थलीन हूँ, आसक्ति शून्य हूँ, उपशान्त हूं, मैं निर्वाण की दिव्य शान्ति का साक्षात्कार कर रही हूँ। मैं अपने को निर्वाणमय, परम शान्तिमय अनुभव करती हूँ।"२
१. थेरी गाथा ८२-८४ २. आधार-सौन्दर नन्द : अश्वघोष, पेरी गाथा: पंचम वर्ग ।
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