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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
परम लावण्यवती अप्सराएं : नन्द स्तंभित विमुग्ध
नन्द से यह बात सुनकर भगवान् आकाश मार्ग द्वारा और ऊपर चलते गये, और ऊपर चलते गये । वे देवराज इन्द्र के नन्दन-वन में पहुँचे । नन्दन-वन की शोभा, आभा, बुति, कान्ति तथा सुन्दरता का कोई पार नहीं था । परम लावण्यवती अप्सराएँ वहाँ अठखेलियाँ कर रही थीं, जिन्हें सदा अविच्छिन्न यौवन प्राप्त रहता है । अप्सराओं के अनिन्द्य सौन्दर्य तथा उनके अप्रतिम आकर्षणमय हास- विलास, हाव-भाव देखकर नन्द स्तंभित हो गया । इनका अत्यन्त माधुर्यमय संगान सुना तो वह विमुग्ध हो उठा । देह यष्टि की सुषमा के साथसाथ उनकी स्वर माधुरी भी अद्वितीय थी । वह उनमें अपने आपको भूल गया, अति आसक्त हो गया ।
कथानुयोग - मेघकुमार : सुन्दर नन्द
प्रज्ञा प्रमार्जन का प्रयोग
भगवान् बुद्ध का यह एक प्रज्ञा-प्रसूत प्रयोग था । जैसे कोई मनुष्य मैले वस्त्र का मैल निकालने के लिए उसे राख से और अधिक मैला बना लेता है, उसी प्रकार भगवान् बुद्ध ने नन्द के राग का परिमार्जन, ध्वंस करने हेतु उसमें और अधिक राग उत्पन्न किया । नन्द का मन, जो अब तक अपनी सुन्दर स्त्री में अटका था, उसके अनुराग में बँधा था, वहाँ से छूट गया और इधर देवांगनाओं में लग गया ।
भगवान् बुद्ध की तो यह लीला ही थी । उन्होंने फिर नन्द से पूछा - "बतलाओ, इन अप्सराओं तथा तुम्हारी पत्नी में कौन अधिक सुन्दर है ?"
नन्दा और अप्सराओं की तुलना
नन्द ने फिर एक बार उन अप्सराओं में मन गड़ाकर उनके प्रति अत्यधिक रागासक्त होकर भगवान् बुद्ध को कहा - "भन्ते ! जैसे वह कुरूपा, कानी बन्दरिया आपकी वधू के- मेरी पत्नी सुन्दरी नन्दा के समक्ष अत्यन्त तुच्छ है, उसी प्रकार आपकी वधू अपरिसीम सौन्दर्य शालिनी इन अप्सराओं के आगे रूप और लावण्य में सर्वथा तुच्छ है । एक समय था, मेरे मन में सुन्दरी नन्दा को छोड़कर और किन्हीं स्त्रियों के प्रति आकर्षण नहीं था, इसी तरह अब इन अप्सराओं को छोड़कर मुझे किसी की चाह नहीं है ।"
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अप्सराओं का शुल्क : तपस्या, धर्माचरण, शील
भगवान बुद्ध बोले -- "मैं जो कह रहा हूँ, कान खोलकर, मन एकाग्र कर सुनो- यदि तुम इन अप्सराओं की इच्छा करते हो तो जानते हो, इनका शुल्क देना होगा, दोगे ?" नन्द बोला - "हाँ, भन्ते ! दूंगा । कैसा शुल्क चुकाना होगा, बतलाइए । "
भगवान् ने कहा- "तपस्या, अविचल धर्माचरण, अप्रमत्ततया शील का प्रतिपालनयही इनका शुल्क है । यदि ऐसा करोगे तो मैं इस बात का प्रतिभू - जामिन हूँ, ये अप्सराएं तुम्हें अवश्य प्राप्त होंगी।"
नन्द ने कहा – “भन्ते ! ठीक है । मैं निश्चित रूप से वह करूंगा, जो आपने बतलाया । "
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भगवान् का नन्द के साथ आकाश से अवतरण
तत्पश्चात् भगवान् बुद्ध नन्द को लिये हुए आकाश से उतरे, भूमि पर आए ।
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