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________________ ६२२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ कपिलवस्तु का निर्माण गौतम ने अपने वंश-क्रम के अनुरूप उनके संस्कार किये । उनको समृद्धिमय, वैभवमय तथा सुखमय बनाने की आकांक्षा से एक दिन मुनि गौतम जलपूर्ण घट लेकर आकाश में उड़े। उन्होंने राजकुमारों को सम्बोधित कर कहा- "अक्षय जल से परिपूर्ण इस घट से मैं भूमि पर जल की धारा गिराता जाऊँगा। तुम लोग उसका उल्लंघन न कर उसका अनुसरण करते रहो।" राजकुमारों ने उनकी आज्ञा शिरोधार्य की । गुरु को प्रणाम कर वे द्रुतगामी घोड़ों से युक्त, अलंकृत रथों पर सवार हुए । मुनि दूर-दूर तक आश्रम के चारों और जल की धारा गिराते गये। राजकुमार उनका अनुसरण करते गये। यों विशाल भू-भाग का चक्कर काट लिये जाने पर मुनि ने राजकुमारों से कहा-- "मेरे स्वर्गवासी होने पर जल द्वारा सिक्त तथा रथ के चक्कों से अंकित इस भूमि पर एक नगर की रचना करना।" कुछ समय बाद मुनि का देहावसान हो गया । राजकुमार बड़े हो गये थे। वे युद्ध-विद्या में निपुण थे, अत्यन्त बलशाली थे, सौभाग्यशाली थे। मुनि कपिल गौतम के स्वर्गवास हो जाने पर अन्य तपस्वियों ने उस वन को छोड़ दिया तथा तपस्या हेतु वे हिमालय पर चले गये। राजकुमारों ने अपने पुण्य प्रभाव से बड़ी-बडी ऋद्धियां प्राप्त की। उन्होंने वस्तु कला के मर्मज्ञ शिल्पियों द्वारा एक विशाल नगर का निर्माण कराया। भवन, प्रासाद, बाजार, कूप, वापी, तडाग, उद्यान, उपवन, विश्रामगह आदि सभी अपेक्षित स्थान, साधन और से युक्त वह नगर कपिल ऋषि के आश्रम के स्थान पर बसा था, इस कारण उसका नाम कपिलवस्तु रखा गया। . D सुविधाओं महाराज शुद्धोधन राजकुमारों में जो सबसे बड़ा था, उसका राज्याभिषेक कर वहाँ का राजा बनाया। वह नगर, जो आसपास के प्रदेश के साथ एक राज्य का रूप लिये था, क्रमशः उन्नत होता गया। राज्य की उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई, सर्वतोमुखी विकास होता गया। क्रमशः वहाँ एक-से-एक बढ़ कर, उत्तमोत्तम धर्म पूर्वक शासन करने वाले राजा होते गये। उसी वंश परम्परा में आगे चलकर शुद्धोधन नामक राजा हुआ, जो उत्तम राजगुणों से युक्त था, विपुल वैभवशाली, सौम्य तथा विनीत था। उदात्त गम्भीर, पावनवृत्ति युक्त, सात्त्विक, नीति निपुण, धीर, एवं सुन्दर था। उसके राज्य में सब प्रजाजन सुखी थे। राज्य-व्यवस्था बहुत उत्तम थी। अन्याय एवं अनीति से वह राज्य शून्य था। सिद्धार्थ और नन्द का जन्म राजा की बड़ी रानी का नाम महामाया था। बोधिसत्त्व ने उसके गर्भ से राजा के पुत्र के रूप में जन्म लिया। उसका नाम सिद्धार्थ रखा गया। राजा की छोटी रानी के भी पुत्र हुआ । उसका नाम नन्द रखा गया। वह बड़ा सुकुमार था; अतः वह सुन्दर नन्द कहा जाता था। राजसी ठाठ से दोनों का लालन-पोषण हुआ। यथासमय सभी संस्कार संपन्न किये गये। उन्होंने विद्या, कला एवं शिल्प का उच्च शिक्षण प्राप्त किया । सिद्धार्थ का यशोधरा तथा नन्द का सुन्दरी नन्दा नामक राजकुमारी के साथ विवाह हुआ। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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