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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग–मेघकुमार : सुन्दर नन्द ६२१ ऐसा हुआ न ? मेघकुमार बोला-"हाँ, भगवन् ! ऐसा ही हुआ।" भगवान् ने उसे वैसा करने की अनुमति प्रदान की। मेघकुमार ने वैसा ही किया। एक मास की संलेखना द्वारा आलोचना, प्रतिक्रमण पूर्वक उसने देह-त्याग किया। साधुओं द्वारा जिज्ञासा किये जाने पर भगवान् महावीर ने बताया कि मेघकुमार विजय नामक अनुत्तर महा विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ है । वहाँ उसकी तीस सागरोपम आयुष्य-स्थिति होगी। गौतम के पुछने पर भगवान् महावीर ने कहा कि मेघकुमार महा विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त होगा, सब प्रकार के दुखों का अन्त करेगा।' सुन्दर नन्द कपिल गौतम कपिल गौतम नामक मुनि थे । तप करने के लिए उन्होंने हिमालय के अंचल में आश्रम का निर्माण किया। सुन्दर लताओं, सघन वृक्षों तथा कोमल तृणों से वहाँ की भूमि आच्छन्न थी। बड़ी सुहावनी, मनोहर और पावन थी। चारों ऋतुओं में फूलने वाले, फलने वाले कुसुम युक्त तथा फलयुक्त वृक्ष वहाँ विद्यमान थे। नीवार धान्य एवं फलों से जीवन निर्वाह करने वाले शान्त, उदात्त एवं निराकांक्ष तपस्वी वहाँ रहते थे। वे बड़े शान्तिप्रिय एवं साधना-प्रवण थे। ऐसा लगता था, मानो वन में कोई आश्रम हो ही नहीं। इतनी निधि शान्ति एवं निःस्तब्धता वहाँ थी। इक्ष्वाकुवंशीय राजकुमार आश्रम में कतिपय इक्ष्वाकुवंशीय राजकुमार शान्तिमय जीवन जीने के लिए अनुकूल तथा उत्प्रेरक उस आश्रम में प्रवास करने की उत्कंठा लिये आये। उनका वक्षःस्थल सिंह की तरह चौड़ा था, भुजाएँ लम्बी थीं, गंभीर व्यक्तित्व था, प्रकृति सौम्य थी। उन द्वारा आश्रम में आये जाने का एक कारण था। उनके पिता के दो रानियाँ थीं। वे बड़ी रानी के पुत्र थे। बड़े योग्य थे। छोटी रानी के भी एक पुत्र था, जो बहुत चंचल आयोग्य और मूर्ख था । छोटो रानी ने राजा से अपने उस पुत्र के लिए राज्य का वचन ले लिया। इन बड़े राजकुमारों ने बल-पूर्वक राज्य स्वायत्त करना उचित नहीं समझा। उन्होंने सोचा-पिता ने छोटे भाई को राज्य देने का संकल्प कर लिया है, हमें उसमें जरा भी बाधा नहीं डालनी चाहिए। अपने पिता के वचन की, संकल्प की रक्षा करनी चाहिए । पुत्र के नाते हमारा यही कर्तव्य है। गौतम गोत्र : शाक्य अभिधा आश्रम के अधिनायक कपिल गौतम उनके उपाध्याय हुए। ये राजकुमार यद्यपि कौत्स गोत्रीय थे, पर, अपने गुरु के गोत्र के अनुसार गौतम गोत्रीय कहलाये। उन राजकुमारों ने जिस स्थान पर प्रवास किया, वह शाक के वृक्षों से आच्छादित था। इस कारण वे शाक्य कहलाने लगे। १. ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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