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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
समय तुम उच्च कुल में जन्मे हो, विशिष्ट पुरुष हो, प्रवजित श्रमण हो । फिर एक रात के पहले व अन्तिम पहर में हुई असुविधा को नहीं सह सके, हिम्मत हार गये, बड़ा आश्चर्य है।" आनन्दाथ : रोमांच : स्थिरता
भिक्षु मेघकुमार ने जब प्रभु महावीर से यह वृत्तान्त सुना, उसके परिणामों में विशुद्धता का संचार हुआ, उसे जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। इससे उसको वैराग्य हो गया। उसकी आँखों में आनन्द के आँसू आ गये। वह रोमांचित हो उठा । वह भगवान् को वन्दननमन कर बोला-"प्रभुवर । मैं आज से अपने दो नेत्रों के अतिरिक्त अपना समस्त शरीर श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए समर्पित करता हूँ।" उसने पुनः श्रमण भगवान् महावीर को प्रणमन किया, वन्दन-नमन किया और उनसे प्रार्थना की—"भगवन् ! मुझे पुनः दीक्षा प्रदान करें।" भगवान् महावीर ने मेघकुमार को पुनः दीक्षित किया और उसे मुनिचर्या का उपदेश दिया। मेघकुमार ने भगवान् का उपदेश भलीभांति स्वीकार किया। वह उसी प्रकार चलने लगा। मेघकुमार ने भगवान् की सेवा में रह ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । एक दिन, दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन, आदि से लेकर अर्घमास, पूर्णमास आदि का तप करते हुए आत्मा को भावित किया।
भगवान् ने राजगृह नगर से गुणशील चैत्य से प्रस्थान किया। वैसा कर अनेक जनपदों में वे विहार करने लगे। एक दिन मेधकुमार ने भगवान् को वन्दन-नमन कर कहा"प्रभुवर ! मैं आपकी अनुमति से एक मासिक भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करना चाहता हूँ।" भगवान् महावीर ने कहा-"तुम्हें जैसा सुख उपजे, करो।" मेघकुमार भगवान् महावीर की अनुमति प्राप्त कर एक मासिक भिक्षु-प्रतिमा स्वीकार कर विचरण करने लगा। एक मासकि भिक्षु-प्रतिमा का भली भाँति परिपालन कर उसने भगवान् की अनुमति से दो मास की, तीन मास की, चार मास की, पाँच मास की, छ: मास की, सात मास की, फिर पहली अर्थात् आठवीं सात अहोरात्र की, नौवीं सात अहोरात्र की, दसवीं सात अहोरात्र की, ग्यारहवीं तथा बारहवीं एक एक अहोरात्र की-आदि प्रतिमाओं का विधिपूर्वक पालन किया।
फिर भगवान् को वन्दन-नमन कर मेघकुमार ने निवेदन किया-"भगवन् ! मैं गुणरत्न-संवत्सर' नामक तप करना चाहता हूं।"
गुण- रत्न-संवत्सर तप : ऊपर तप : समाधि-मरण
मेघकुमार ने भगवान् की अनुमति से गुण-रत्न संवत्सर तप परिपूर्ण किया । और भी बहुत प्रकार के तप किये । धोर तप के कारण उसका शरीर बहुत दुर्बल और हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया। भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृह पधारे। मेघकुमार ने एक दिन अर्ध रात्रि के सण्य चिन्तन किया, मैं शरीर से बहुत कमजोर हो गया हूँ, भगवान् महावीर को वन्दन-नमन कर उनकी आज्ञा से समाधि मरण प्राप्त करूं । यों अन्त: प्रेरणा से अनुप्राणित होकर, भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार कर वह उनकी सन्निधि में बैठ गया। भगवान् ने रात में उसके मन में जो विचार आया था, उसे बतलाते हुए कहा कि
१. इस तप में तेरह मास और सतरह दिन उपवास के होते हैं, तिहत्तर दिन पारणा
के होते हैं । यों सोलह मास में यह तप पूरा होता है।
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