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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ दो युवतियाँ चवर बीजने लगीं। पूर्व दिशा में एक युवती पंखा लेकर खड़ी हुई। एक युवती मेघकुमार के आग्नेय दिशा-कोण में पानी की भारी लेकर खड़ी हुई । एक हजार पुरुषों ने पालकी को उठाया। समारोह के साथ मेघकुमार वहाँ से चला। भगवान् महावीर के पास आया । पालकी से नीचे उतरा। मेघकुमार के माता-पिपा ने भगवान् महावीर को वन्दननमस्कार कर कहा- "हमारा इकलौता पुत्र मेघकुमार संसार से विरक्त है। आप से प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहता है। देवानुप्रिय ! हम आपको शिष्य की भिक्षा दे रहे हैं, कृपा कर स्वीकार करें।" भगवान महावीर ने उनका कथन स्वीकार किया। मेघकूमार भगवान महावीर के पास से ईशान कोण में गया। अपने गहने, माला आदि उतार कर दिये । माँ ने उन्हें सम्हाला । माता-पिता भगवान् को वन्दन-नमस्कार कर जिधर से आये, उधर ही लौट आये। उसके बाद मेघकुमार ने स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया। वह भगवान् महावीर के पास आया। उन्हें दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा की, वन्दन-नमस्कार किया । भगवान् महावीर से दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की। भगवान ने स्वयं मेघकुमार को दीक्षित किया तथा आचार-धर्म की शिक्षा दी। मेषकुमार ने वह सब सुना और उसे अंगीकार किया। दीक्षित जीवन की पहली रात : घबराहट : अधीरता जिस दिन मेघकुमार दीक्षित हुआ, उसी दिन सायंकाल श्रमणों के लिए रात्रि में सोने हेत दीक्षा की ज्येष्ठता के अनुक्रम में शयन-स्थानों का विभाजन हुआ। मेघकुमार का सोने के हिस्से का स्थान द्वार के समीप आया। श्रमण रात्रि के प्रथम तथा अन्तिम पहर में वाचना, पच्छना, परावर्तन आदि के लिए, उच्चार-प्रस्रवण आदि के लिए बार-बार आतेजाते रहे। बार-बार आने-जाने से मेघकुमार से टकरा जाते, किसी के पैर टकरा जाते, किसी के मस्तक टकरा जाते। किन्हीं-किन्हीं के पैरों की धूल से वह भर गया। कोई-कोई मेघकुमार को लांघकर दो-दो तीन-तीन बार आये गये। इससे मेघकुमार लम्बी रात में पल-भर के लिए भी अपनी आँखें नहीं मूंद सका। मेधकुमार के मन में विचार आया, मैं राजा श्रेणिक और रानी धारिणी का पुत्र हूं। जब मैं अपने घर में था, तब सभी साधु मेरा सम्मान करते थे। मधुर वाणी से मेरे साथ वार्तालाप करते थे, परन्तु, जब मैं गृहवास छोड़कर दीक्षित हो गया, तब से ये साधु मेरा आदर नहीं करते । ये रात के पहले और पिछले भाग में मुझे लांघते हुए आते-जाते रहे, जिससे मुझे रात भर जरा भी नींद नहीं आई । सवेरा होने पर मैं श्रमण भगवान महावीर के पास जाऊंगा। यही मेरे लिए अच्छा होगा। मेघकुमार यों विचार कर दुःखित हो गया। वह रात मेघकुमार ने नरक की तरह बिताई । दिन उगा। वह श्रमण भगवान् महावीर के पास आया। वन्दन-नमस्कार किया और भगवान् के पास स्थित हो वह उनकी पर्युपासना करने लगा। भगवान महावीर द्वारा उद्बोधन भगवान् मेघकुमार से बोले- मेघ ! तुम रात के पहले और पिछले भाग में साधुओं के आते-जाते रहने के कारण जरा भी नींद नहीं ले सके। तब तुम्हारे मन में ऐसा विचार आया कि मैं जब गृहस्थ में था, तब साधु मेरा आदर करते थे, किन्तु, जब से दीक्षित हुआ हूँ, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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