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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
मेघकुमार का दृढ़ संकल्प
मेवकुमार बोला- "यह जीवन क्षणभंगुर है। विद्युत की चमक के समान चंचल और अस्थिर है, जल के बुदबुदे के समान है, स्वप्न - जैसा है। इसलिए कौन जानता है, कौन पहले जायेगा और कौन बाद में जायेगा । इसलिए मुझे दीक्षा लेने की कृपा कर आज्ञा दीजिए।" माता-पिता ने मेघकुमार को फिर से कहा - "अपनी रूप लावण्य युक्त पत्नियों के साथ सुख भोगो, बाप-दादों से चले आये राज्य को भोगो, खूब दान करो, खूब बाँटो, यो सांसारिक सुख भोग कर दीक्षा लो ।"
कथानुयोग — मेघकुमार सुन्दर नन्द
कह रहे हैं, वे सब नश्वर हैं ।"
मेघकुमार ने कहा - "जो आप माता-पिता ने कहा- "बेटा ! निर्ग्रन्थ- प्रवचन सत्य है, पर वह बहुत कठिन है । उसका पालन करना तलवार की धार पर चलने के समान है। सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, वात, पित्त, कफ तथा सन्निपात से होने वाले रोग, दु:ख आदि तुम सहन नहीं कर सकोगे । इसलिए अपना विचार छोड़ो। " मेघकुमार बोला - "साधारण लोगों के लिए आप जो कहते हैं, वैसा ही है, किन्तु, धीर तथा दृढ़ संकल्प-युक्त पुरुषों के लिए संयम का पालन करना कुछ भी कठिन नहीं है । मैं यह सब करूंगा । आप मुझे प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति दीजिए ।"
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माता-पिता द्वारा स्वीकृति
जब माता-पिता ने देखा – मेघकुमार अपने निश्चय पर दृढ़ है तो उन्होंने उससे कहा कि हमारी यह आन्तरिक इच्छा है कि कम से कम एक दिन के लिए तो राजा बनो । मेवकुमार माता-पिता की भावना को मान देते हुए मौन रहा । तत्पश्चात् राजा श्रेणिक ने मेघकुमार का राज्याभिषेक किया ।
मेघकुमार की दीक्षा
माता-पिता ने मेघकुमार से कहा- “पुत्र ! बतलाओ, हम तुम्हारी कौन पी इच्छा पूर्ण करें ।” मेघ ने कहा कि कुत्रिकापण ( जहाँ सब प्रकार की वस्तुएँ होती हैं, वैसी अलौकिक देवाधिष्ठित दुकान ) से रजोहरण एवं पात्र मंगवा दें, काश्यप नापित को मुण्डत हेतु बुलवा दें। श्रेणिक ने अपने कौटुम्बिक जनों को आज्ञा दी कि तुम खजाने से तीन लाख मोहरें लेकर, उनमें से दो लाख में रजोहण तथा पात्र लाओ और एक लाख मोहरें नाई को देकर उसको बुला लाओ । राजा की आज्ञानुसार उन्होंने वैसा ही किया । राजा ने नाई से कहा-' "मुगन्धित गन्धोदक से अच्छी तरह हाथ-पैर धो लो, फिर चार तह किये हुए सफेद कपड़े से मुँह बाँधो और मेघकुमार के बाल दीक्षा के योग्य चार अंगुल छोड़कर काट दो ।" नाई ने राजा की आज्ञा का पालन किया । मेघकुमार की माता ने उन केशों को उज्ज्वल वस्त्र में ग्रहण किया। उन्हें सुगन्धित गन्धोदक से धोया । उन पर गोशीर्ष चन्दन छिड़ककर उन्हें सफेद वस्त्र में बांधा। बाँधकर रत्न की डिबिया में रखा। उस डिबिया को पेटी में रखा. इस भावना से कि विशेष उत्सवों के अवसर पर ये मेवकुमार के अन्तिम दर्शन के प्रतीक होंगे। मेघकुमार को विधिवत् स्नान कराया । वस्त्र, आभूषण पहनाए । मेघकुमार ने पुष्प मालाएँ धारण की ।
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राजा ने अपने सेवकों को एक पालकी तैयार करने की आज्ञा दी । मेघकुमार पालकी पर आरूढ़ हुआ । मेघकुमार की माता पालकी पर दाहिनी ओर बैठी। दोनों ओर
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