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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
में आया था, तब इसकी माता को अकाल मेघ का दोहद हुआ था, इसलिए इसका नाम मेघकुमार होना चाहिए तदनुसार उसका मेघकुमार नाम रखा गया।
राजसी ठाठ के साथ लालन-पालन
मेघकुमार का राजसी ठाठ के साथ लालन-पालन होने लगा। जब वह आठ वर्ष का हुआ, माता-पिता ने उसे अच्छे मुहूर्त में कलाचार्य- शिक्षक के पास भेजा, जहाँ उसने ६२ कलाओं की शिक्षा प्राप्त की। राजा ने कलाचार्य को सम्मानित किया, पुरस्कृत किया तथा उसे जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। माता-पिता ने मेघकुमार के निमित्त आठ बहुत ऊँचे, उज्ज्वल, द्युतिमय महल बनवाये। महलों को सजाया। एक विशाल भवन मेघकुमार के लिए विशेष रूप से बनवाया । वह सैकड़ों स्तम्भों पर टिका था । वह बहुत सुन्दर और मनोहर था।
आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण
उसके बाद मेघकुमार के माता-पिता ने अपने समान राजकुलों की आठ कन्याओं के साथ एक ही दिन मेघकुमार का पाणिग्रहण करवाया। मेधकुमार के माता-पिता ने उन कन्याओं को आठ करोड़ रजत, आठ करोड़ स्वर्ण, अनेक दासियाँ, रत्न, मणि, मोती आदि के रूप में प्रीतिदान दिया।
मेघकुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक करोड़ रजत और एक-एक करोड़ स्वर्ण दिया। मेघकुमार अपनी पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
भगवान् महावीर का दर्शन : दीक्षा की भावना
उस समय भगवान् महावीर पद-यात्रा करते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव होते हुए राजगृह नगर में आये । गुणशील नामक चैत्य में रुके । मेघकुमार को जिज्ञासा हुई। भगवान् महावीर का पर्दापण हुआ, जानकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। मेघकुमार स्नान आदि कर तैयार हुआ । भगवान् के दर्शनार्थ गुणशील नामक चैत्य में आया। भगवान् को वन्दन-नमन किया। भगवान् ने धर्म-देशना दी। श्रुत-धर्म तथा चारित्र-धर्म का विश्लेषण किया। मेघकुमार अत्यन्त प्रभावित हुआ। उसने भगवान से निवेदन किया-..."मैं माता-पिता की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा ग्रहण करूंगा।" भगवान् बोले – “जिससे तुझे सुख उपजे, वैसे करो। उसमें विलम्ब मत करना।"
माता-पिता की खिन्नता : घर में रहने का अनुरोध
मेघकुमार भगवान् को वन्दन-नमन कर, उनका स्तवन कर, अपने घोड़ों के रथ पर सवार होकर माता-पिता के पास आया और कहा- 'मैं भगवान् महावीर के पास मुनि-दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ।" उसकी माँ यह सुनकर बहुत खिन्न हुई और धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ी। वह मेघकुमार से बोली-"तू हमारा इकलौता बेटा है। हमें बहुत प्रिय है। जब तक हम तुम्हारे माता-पिता जीवित हैं, तुम सांसारिक सुखों को भोगो। जब हम कालगत हो जाएँ, तुम्हारी आयु परिपक्व हो जाए, बेटों-पोतों आदि के रूप में वंश-वृक्ष अभिवधित हो जाए, उस समय तुम भगवान् के पास प्रव्रज्या स्वीकार करना।"
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