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तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
कथानुयोग-मेघकुमार : सुन्दर नन्द
निवेदित किया। यह सुनकर राजा धारिणी के पास आया पूछा - "तुम दुःखी क्यों हो।" बार-बार अनुरोध करने पर धारिणी ने कारण बताया। राजा रानी का दोहद पूर्ण करने का उपाय सोचने लगा, पर, समझ में नहीं आया । राजा चिन्तित हो गया। अभयकुमार स्नान आदि करके राजा के पास आया, राजा को चिन्तित देखकर अभयकुमार ने कारण पूछा। राजा ने कारण बताया। अभय कुमार बोला- "मैं अपनी छोटी माता धारिणी के इम अकाल दोहद को पूरा करने का प्रयास करूंगा।"
अभय कुमार सोचने लगा-यह देव सम्बद्ध उपाय के बिना पूरा नहीं होगा। उसे याद आया, सौ धर्म कल्प में रहने वाला एक देव मेरा पूर्व भव का मित्र है। महान ऋद्धिशाली है । मुझे चाहिए कि मैं पोषधशाला में पोषध स्वीकार कर, ब्रह्मचर्य धारण कर, आभूषण आदि का परित्याग कर, डाभ के बिछौने पर स्थित होकर तीन दिन की तपस्या करूं, अपने पूर्व भव के मित्र देव का मन में चिन्तन करता हुआ स्थित रहूँ। वह देव मेरी छोटी माता धारिणी का दोहद पूरा करेगा। अभयकुमार ने वैसे ही किया। उसके पूर्व भव के मित्र देव का आसन चलित हुआ। देव ने अवधि ज्ञान से देखा । देव अभयकुमार के पास,प्रकट हुआ। आकाश में स्थित होकर बोला--"मैं तुम्हारा क्या इष्ट कार्य करूं?" अभयकुमार ने अपनी छोटी माता की इच्छा बतलाई, उसे पूर्ण करने का अनुरोध किया । देव ने वैसा करना स्वीकार किया। वैक्रिय समुद्घात द्वारा उसने बादल, बिजली, वर्षा--ये सब आविर्भूत किये। उसने अभय कुमार के पास आकर कहा कि मैंने वह सब कर दिया हैं, जो आपने चाहा। आप अपनी माता से कहला दीजिए। अभयकुमार राजा श्रेणिक के पास आया और निवेदन किया। राजा रानी के पास आया और उसे अपना दोहद पूरा करने को कहा। रानी ने स्नान आदि किया। वस्त्र-आभूषण धारण किये। सेचनक नामक गन्ध हस्ती पर वह आरूढ़ हइ । राजा श्रेणिक भी गन्थ हस्ती पर आरुढ हुआ। रानी धारिणी का अनगमन किया। वे वैभार पर्वत पर आये । वहाँ के दृश्य देखे, मनोरंजन किया। रानी ने अपना दोहद पूर्ण किया। वे अपने भवन में लौट आये।
तत्पश्चात् अभयकुमार पोषधशाला में आया। अपने मित्र देव का सत्कार-सम्मान कर उसे विदा किया। देव ने अपनी माया को समेटा और वह जहाँ से आया था, वहीं चला गया।
मेघकुमार का जन्म
राजा धारिणी अपने दोहद की पूर्ति से बहुत प्रसन्न हुई। नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर उसने एक सर्वांग सुन्दर शिशु को जन्म दिया। दासियों ने राजा को यह शुभ समाचार सुनाया। राजा ने प्रसन्न होकर उनको पुरस्कार दिया, गहने दिये और उन्हें दासता से मुक्त किया। उनके लिए ऐसी आजीविका कर दी, जो उनके बेटों-पोतों तक चलती रहे।
राजा ने श्रेणिक ने पुत्र-जन्म की खुशी में दस दिन तक समारोह मनाया। बहुत दान दिया। तत्पश्चात् उस बालक का पहले दिन जात कर्म संस्कार हुआ। यथासमय अन्यान्य संस्कार किए गए। बारहवें दिन राजा ने बहुत बड़े भोज का आयोजन किया, जिसमें मित्रों, बन्धुओं, अपने जातीयजनों आदि को आमंत्रित किया। राजा ने कहा, जब यह बच्चा गर्भ
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