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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
नन्द की भोग-कांक्षा का सर्वथा विलय हो गया। वह चिर अभ्यस्त वासना से विमुक्त हो गया। धर्माराधना में लीन हो गया। उसने अपना परम लक्ष्य प्राप्त किया।
दोनों कथानक, जो यहाँ वणिति हैं, 'भोग पर त्याग की विजय' के अद्भुत उदारहण हैं।
कथांगों में स्व-स्व-परंपरानुरूप भिन्नता रहते हुए भी दोनों का मूल लक्ष्य, जो संयम की स्थिरता में सन्निहित हैं, एक है।
मेघकुमार राजगृह-नरेश श्रेणिक
जम्बू द्वीप के अन्तर्गत दक्षिणा, भरत में राजगृह नामक नगर था। राजगृह के उत्तर-पूर्व दिशा भाग में— ईसान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। राजगृह में श्रेणिक नामक अत्यन्त प्रतापी राजा राज्य करता था। उसके अनेक रानियां थीं। उसकी नन्दा नामक रानी से अभयकुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो अत्यन्त बुद्धिमान् था। वह अपने पिता को राज्य शासन में बहत बड़ा सहयोग करता था, अमात्य का कार्य करता था।
महारानी धारिणि : स्वप्न
राजा श्रेणिक की पटरानी का नाम धारिणी था। वह बहुत सुकुमार एवं रूप-लावण्य युक्त थी। एक समय का प्रसंग है, धारिणी अपने भवन में सुखपूर्वक शय्या पर सो रही थी। मध्य रात्रि के समय जब वह न गहरी नींद में थी, न जाग रही थी, तब उसने एक स्वप्न देखा । सात हाथ ऊँचे, चांदी के शिखर के समान उज्ज्वल सौम्य, सौम्याकार, लीला विलसित श्वेत हस्ती को नम स्थल से अपने मुंह में प्रवेश करते हुए देखा। वह जगी। इस उत्तम स्वप्न से प्रसन्न हुई। अपने पति राजा श्रेणिक को जगाया। हाथ जोड़कर स्वप्न की बात कही । राजा प्रसन्न हुआ। वह बोला-"इस स्वप्न से तुम्हें पुत्र-रत्न का लाभ होगा। वह पुत्र बड़ा पराक्रमी होगा।" रानी यह सुनकर प्रसन्न हुई।
राजा ने सभा का आयोजन किया। स्वप्न शास्त्र के पंडितों को बुलाया। पंडितों ने बताया-"रानी के यशस्वी पुत्र होगा। उन्होंने कहा-"वह पुत्र राज्य का अधिपति होगा अथवा अपनी आत्मा को संयम से अनुभावित करने वाला अनगार होगा।" राजा यह सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। राजा रानी के पास आया और उसने उसे यह सब कहा। धारिणी का दोहद
जब रानी गर्भवती होने के दो महीने व्यतीत हुए, तब उसको अकाल-मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ। उसने सोचा--पाँच वर्णों वाले मेघ हों, बिजली चमक रही हो, मेघ गरज रहे हों, बरस रहे हों, पृथ्वी घास से युक्त हो ऐसे वर्षा काल में जो माताएं स्नान कर, बलिकर्म कर, कौतुक-मंगल कर अपने पति के साथ वैभार गिरि के प्रदेशों में विहार करती हैं, वे धन्य हैं।
संकोच वश रानी ने इस सम्बन्ध में चर्चा नहीं की। दोहद पूर्ण न होने के कारण धारिणी मानसिक दृष्टि से सन्तप्त हो गई। उसकी सेविकाओं ने राजा श्रेणि क से यह सब
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