________________
६११
तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-मेघकुमार : सुन्दर नन्द
१६. मेघकुमार : सुन्दर नन्द
काम, भोग जागतिक जीवन में सबसे बड़े आकर्षण है। उन्हें छोड़ पाना निश्चय ही बहुत कठिन है । यौवन वैभव और प्रभुत्व -यदि इन तीनों का योग हो तो फिर कहना ही क्या। वैषयिक लिप्साओं को लाँघ पाना अशक्यप्राय होता है । यद्यपि यह सत्य है, किन्तु, महापुरुषों की प्रेरणा, मार्गदर्शन और अनुग्रह द्वारा यह अशक्य भी शक्य बन जाता है । भारतीय साहित्य में इसके अनेक उदारहण प्राप्त हैं।
जैन-वाङ्मय में मगध नरेश श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार तथा बौद्ध-धर्म-वाङ्मय में शाक्य राजा शुद्धोधन के पुत्र, भगवान बुद्ध के वैमात्रिक कनिष्ठ भ्राता नन्द का जीवन इसके ज्वलन्त प्रतीक हैं।
भगवान् महावीर की धर्म-देशना श्रवण कर मेघकुमार का हृदय भावोद्वेलित हो जाता है । अनुपम मोग, जो उसे प्राप्त थे, विषवत् परिहेय प्रतीत होने लगते हैं। वह उच्च संस्कारी तरुण था । श्रमण-दीक्षा स्वीकार करने को संकल्पबद्ध हो जाता है। पारिवारिक बाधाओं का अपाकरण की दीक्षा ग्रहण करता है, भगवान् महावीर का अन्तेवासी बन जाता है।
नन्द की प्रव्रज्या कुछ और ढंग से होती है। उसके सत्संस्कार सुषुप्त थे। उन्हें उबुद्ध करने का भगवान बुद्ध स्वयं प्रयत्न करते हैं। उसके न चाहते हुए भी वे उसे भिक्षु बना लेते हैं।
___राजपुत्र मेघ कुमार दीक्षित जीवन की प्रथम रात्रि में ही अधीर हो उठता है । सुखसुविधाओं में पले-पुसे जीवन में, असुविधाएँ जो एक श्रमण के जीवन में पग-पग पर उपस्थित होती रहती हैं, झेलपाना सचमुच बड़ा कार्य है । मेघ कुमार मन-ही-मन चाहता है, वह वापस घर लौट जाए।
नन्द तो भिक्षु-जीवन के प्रति अनिच्छुक था ही। अनिन्द्य सुन्दरी पत्नी नन्दा में उसकी तीव्रतम आसक्ति थी। भगवान् बुद्ध का अनुगमन करते समय वह उससे कहता आया था कि उसके मुख-मण्डन (चन्दन और सुरभित पदार्थों द्वारा मुखांकित लेप्य-सज्जा) सूखने से पूर्व ही वह लौट आयेगा। नन्द अत्यन्त व्यथित था, वह कहाँ फंस गया। पहले ही दिन वह श्रमण जीवन की कठिनाइयों से बुरी तरह घबरा गया।
भगवान महावीर जैसे मेघकुमार की अन्तर्व्यथा तत्क्षण समझ गये, भगवान बुद्ध ने भी नन्द की मनः स्थिति को भांप लिया।
भगवान महावीर ने मेघकुमार के अन्तर्भावों का परिलोकन कर उसे उसके पूर्वभव का आख्यान सुनाते हुए, जहाँ उसने हाथी के भव में संकट की घड़ी में अत्यन्त तितीक्षा तथा साहिष्णुता का परिचय दिया था, धर्मोपदेश द्वारा उसे संयम में स्थिर रहने को उत्प्रेरित किया। मेघकुमार का अन्तर्बल जाग उठा । वह संयम में तन्मय हो गया। भिक्षु-प्रतिमाओं की आराधना एवं अनेकविध घोर तपश्चरण द्वारा वह अपने साघु जीवन को उतरोत्तर उजागर करता गया।
भगवान बुद्ध ने नन्द की कामाकुल, मोहाकुल मनःस्थिति के परिमार्जन हेतु एक दूसरी पद्धति अपनाई । उन्होंने उसे दैविक भोगों कि विलक्षणता का अनुभव कराकर, जो धर्माचरण द्वारा लभ्य हैं, सांसारिक भोगों की तुच्छता का भान कराया। आगे उसे त्याग की गरिमा की प्रतीति कराते हुए इन्द्रिय संयम और वितर्क-प्रहाण का उपदेश दिया। फलतः
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org