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________________ ६१० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ __शास्ता बोले-"भिक्षुओ ! कोकालिक ने न केवल बोलकर अभी अपनी स्थिति उद्घाटित की है, अतीत में भी इसने बोलकर यों ही अपनी वास्तविकता प्रकट की थी।" बोधिसत्त्व हिमाद्रि-प्रदेश में सिंह के रूप में शास्ता ने इस प्रकार कहकर पूर्व-जन्म का वृत्तान्त सुनाया पूर्व काल का प्रसंग है, वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त राज्य करता था। उस समय बोधिसत्त्व हिमाद्रि-प्रदेश में सिंह के रूप में उत्पन्न हुए। वे वहाँ के सिंहों के अधिपति थे। बहुत से सिंहों के साथ वे रजत-गुहा में निवास करते थे। रजत-गुहा के समीप ही एक और गुहा थी, जिसमें एक शृगाल निवास करता था। एक दिन की बात है, पानी बरसा । सब सिंह प्रसन्नता से सिंहराज की गुहा के द्वार पर एक बहुए। वे सिंहनाद करने लगे, सिंहोचित क्रीड़ा करने लगे। शृगाल की चिल्लाहट ___ समीपस्थ गुहावासी शृगाल ने यह सब सुना। उससे नहीं रहा गया। वह भी अपने आपको वैसा प्रदर्शित करने का दंभ लिये चिल्लाने लगा। सिंहों ने उसका चिल्लाना सुना। उन्होंने मन-ही-मन कहा-यह शृगाल भी हमारे साथ आवाज लगाने का-गरजने का उपक्रम कर रहा है । उन्हें ग्लानि अनुभव हुई। उन्होंने गरजना बंद कर दिया। जब सिंह यों चुप हो गये तो बोधिसत्व-सिंहराज के पुत्र सिंह-शावक ने कहा"तात ! क्या कारण है, ये सिंह, जो अब तक गर्जना करते हुए सिंह-क्रोडा में अभिरत थे, एकाएक किसी का स्वर सुनकर चुप हो गये। तब सिंह-शावक ने निम्नांकित गाथा कही "को नु सद्देन महता, अभिनादेति दद्दर । कि सीहा न पटिनंदन्ति, को नामेसो मिगाधिभु ॥ मृगाधिपति ! यह कौन है, जो अपने महत् शब्द द्वारा-जोर-जोर से चीखता हुआ दद्दर पर्वत को अभिनादित कर रहा है। उसका नाद सुनकर सिंह प्रतिनाद क्यों नहीं करते ? चुप क्यों हो गये हैं ?" सिंहराज ने अपने पुत्र से कहा "अधमो मिगजातानं, सिगालो तात! वस्सति । जातिमस्य जिगुच्छन्ता, तुण्ही सीहा समच्छरे । पुत्र ! यह मृग-जाति में--पशु जाति में अधम-नीच—निम्न कोटिक शृगाल चीख रहा है। सिंह उसकी अधम जाति के प्रति जुगुप्सा का भाव लिये चुप हो गये हैं। शृगाल के स्वर के साथ स्वर मिलाते वे व्रीडा का अनुभव करते हैं।" भगवान् ने कहा-“भिक्षुओ ! कोकालिक ने न केवल इस समय ही अपनी वाणी द्वारा अपने आपको प्रकट किया है, वरन् जैसा मैंने पूर्व-जन्म का वृत्तान्त सुनया, उसने पहले भी ऐसा किया है।" शास्ता बोले- "उस समय जो शृगाल था, वह कोकालिक है। उस समय का सिंहशावक राहुल है । उस समय सिंहाधिप मैं ही था। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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