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६०८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ बोले-"इस कोकालिक ने इस समय ही ऐसा नहीं किया, पूर्व जन्म में भी इसने अपनी बोली द्वारा अपना रूप प्रकट कर दिया था।" बोधिसत्त्व सिंह के रूप में
शास्ता ने पूर्व-जन्म की कथा इस प्रकार कही
पूर्व काल का वृत्तान्त है, वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त राज्य करता था। तब बोधिसत्त्व हिमालय-प्रदेश में सिंह के रूप में उत्पन्न हुए । वहाँ एक शृगाली के सहवास से उनके एक पुत्र पैदा हुआ। उस शावक का रंग, उसके अयाल, उसकी अंगुलियाँ-पंजे, नाखून, उसका दैहिक आकार --स्वरूप--ये सब अपने पिता सिंह के सदृश थे। उसका स्वर अपनी माता शृगाली जैसा था।
शुगाली-प्रसूत सिंह-शावक का स्वर
___एक दिन की बात है, वर्षा हुई थी। सिंह बड़े प्रसन्न थे। वे दहाड़-दहाड़ कर गरज रहे थे, सिंहोचित कोड़ा-रत थे । शृगाली-प्रसूत सिंह-शावक के मन में आया- मैं भी गर्जना करूं । यह सोच उसने भी गरजने का उपक्रम किया, पर, उसका स्वर तो शगाल-जैसा था। उसे सुनकर सब सिंह निःशब्द हो गये। उस शृगाली-प्रसूत शावक के जनक सिंह का एक स्वजाति-प्रसूत--सिंही से उत्पन्न पुत्र भी था । उसने उस शृगाली-प्रसूत सिंह-शावक का स्वर सुनकर अपने पिता से प्रश्न किया
"सीहङ्गुली सोहनखो, सोहपाटपतिट्ठिओ।
सो सीहो सीहसङ्घम्हि, एको नदति अज्ञथा ॥ जिसकी अंगुलियाँ, नाखून तथा पैर सिंह सदृश हैं, वह सिंह-समुदाय में अन्यथाअन्य प्रकार से नाद—आवाज कैसे कर रहा है ? शृगाल की ज्यों कैसे बोल रहा है ?"
यह सुनकर मृगराज के रूप में विद्यमान बोधिसत्त्व ने कहा-"पुत्र ! यह तेरा भाई है, पर, शृगाली से प्रसूत है। इसका आकार-प्रकार तुझ जैसा है तथा इसका स्वर इसकी माता शृगाली-जैसा है। मृगराज द्वारा शिक्षा
मृगराज ने फिर शृगाली-पुत्र को अपने पास बुलाया और उसे शिक्षा देते हुए कहा
"मा त्वं नदि राजपुत्त ! अप्पसद्दो वने वस।
सरेन रवो तं जनेय्यु, न हि ते पेत्तिको सरो॥ राजकुमार ! तू कभी उच्च स्वर से मत बोलना । इस वन में वास करते हुए तू सदा अल्पशब्द रहना-कम बोलना, धीरे बोलना। अन्यथा तुम्हारे स्वर से यहाँ के सिंह जान लेंगे कि तुम सिंह नहीं हो, शृगाल हो; क्योंकि तुम्हारा स्वर पैतृक-पिता-जैसा नहीं है, माता जैसा है।"
शृगाली-पुत्र ने अपने पिता से यह सुन कर फिर कभी उच्च स्वर से बोलने का दुःसाहस नहीं किया।
शास्ता ने कहा- "भिक्षु कोकालिक तब शृगाली-पुत्र था। राहुल सिंही-प्रसूत स्वजातीय पुत्र था। सिंहराज तो मैं ही था।"
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