SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-बाघ का चमड़ा ओढ़े सियार : सीह.... ६०७ छोड़ दिया। जो खेत की रखवाली कर रहे थे, उन्होंने उसे सिंह समझा। भय से उसके पास नहीं गये। वे तत्काल अपने घर आये, सब को यह खबर दी। गांव के लोग शस्त्र लिये ढोल पीटते हुए, शंख बजाते हुए इधर आ निकले, जोर-जोर से शोर करने लगे। गर्दभ ने देखाये मुझे मारेंगे। वह मौत के डर से घबरा गया। भीतिवश वह जोर-जोर से रेंकने लगा। बोधिसत्त्व, जो कषक के रूप में थे, जान गये कि यह सिंह नहीं है, गर्दभ है। तब उन्होंने निम्नांकित गाथा कही 'नेतं सीहस्स नदितं, न व्यग्घस्स न दीपिनो। पारुतो सोहचम्मेन, जम्मो नदति गद्रभो ॥ यह सिंह का नदित-स्वर नहीं है और न यह बाघ का स्वर है और न चीते का ही। यह तो सिंह-चर्म से प्रावृत-सिंह-चर्म से ढका हुआ-सिंह का चमड़ा पहना हुआ अधम गर्दभ रेंक रहा है।" गर्दभ का प्रणान्त गाँव के लोगों को जब यह मालूम हुआ, उनका डर निकल गया। उन्होंने उस गधे को पीट-पीट कर उसकी हड्डियाँ चूर-चूर कर दीं। उन्होंने उस पर से सिंह-चर्म उतार लिया और उसे लेकर गाँव लौट आये। उस वणिक् ने जब अपने गर्दभ को यो संकट में पड़े देखा तो उसने निम्नांकित गाथा कही "चिरम्मि खो तं खादेय्य, गद्रभो हरितं यवं। पारुतो सीहचम्मेन, रवमानोव इसयि ॥ गर्दभ ! चिरकाल तक सिंह-चर्म से प्रावृत तू हरे-हरे जो चरता रहा । तूने अपने ही रव-स्वर या आवाज द्वारा अपने आपको संकट में डाल दिया, नष्ट कर दिया।" वणिक् के यों कहते-कहते गर्दभ वहीं गिर गया और मर गया। वणिक् उसे वहीं छोड़कर चला गया। ___ भगवान् ने कहा--"उस समय जो गर्दभ था, वह भिक्षु कोकालिक है, पण्डित कषक तो मैं ही था।" सीहकोत्थुक जातक कोकालिक की अयोग्यता एक दिन अनेक बहुश्रुत भिक्षु धर्म वाचना कर रहे थे। भिक्षु कोकालिक ने भी चाहा, वह धर्म-वाचना करे, यद्यपि वह वैसा करने में सक्षम नहीं था। उसमें वैसी योग्यता नहीं थी। भिक्षुओं ने परीक्षा की दृष्टि से उसे धर्म-वाचना का अवसर दिया। उसने भिक्षु-संघ के मध्य धर्म-वाचना करने की हिम्मत तो की, पर, वह अज्ञ था, सफल नहीं हो सका । प्रथम गाथा का एक पद कहते ही अटक गया, बड़ा लज्जित हुआ, वहाँ से चला गया। भिक्षुओं ने देखा-कोकालिक ने स्वयं ही अपना अज्ञान प्रकट कर दिया। एक बार भिक्षु प्रसंगवश यही बात कर रहे थे, इतने में शास्ता उधर पधार गये। उन्होंने वार्तालाप के सम्बन्ध में भिक्षुओं से पूछा । भिक्षुओं ने बतलाया। तब शास्ता उनसे ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy