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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - बाघ का चमड़ा ओढ़े सियार : सीह० ६०५
समक्ष उपहासास्पद होता, उसकी अयोग्यता प्रकट होती । इसी परिप्रेक्ष्य में शास्ता ने पूर्व जन्म के प्रसंग गृहीत कर गधे और शृगाल की कथाएँ कहीं ।
जैन और बौद्ध — दोनों में तात्त्विक कथ्य अभिन्न हैं, कलेवर तथा रूप में भिन्नता है । कथाएँ, जो यहाँ उपस्थापित हैं, जन साधारण के लिए मनोरंजक भी हैं तथा बोधवर्धक भी ।
बाघ का चमड़ा ओढ़े सियार
एक किसान था । उसने अपने खेत में गन्ना बोया । गन्ने की फसल बड़ी अच्छी हुई । कुछ सियार उस खेत में आने लगे, गन्ने खाने लगे, नुकसान करने लगे ।
खेत की रक्षा
किसान को बड़ी चिन्ता हुई, यदि सियारों का खेत में आते रहने का, गन्ने खाते रहने का ऐसा ही क्रम चला तो मेरी फसल चौपट हो जाएगी। ये सियार सारा गन्ना खा जायेगे । उसने सोचा, इन सियारों को खेत में आने से रोकने का एक ही उपाय है, खेत के चारों ओर मैं खाई खुदवा दूं ।
सियार का खाई में निपतन
यों सोचकर उसने खाई खुदवा दी। एक बार का प्रसंग है, एक सियार खाई को लांघने का प्रयत्न करता हुआ खाई में गिर पड़ा। किसान ने देखा । उसने उसे खाई से बाहर निकलवाया। उसके दोनों कान काट दिये, पूंछ काट दी। उसे बाघ का चमड़ा ओढ़ा दिया । उसके गले में एक घंटी बाँध दी। ऐसा कर उसे छोड़ दिया ।
भय का भूत
वह सियार जंगल में भागा । उसके साथी सियारों ने उसे देखा । पहचान नहीं पाये । वे उसका अजनबी रूप देखकर, उसके गले में बंधी घंटी का विचित्र शब्द सुनकर डर गये, भागने लगे ।
उन भागते हुए सियारों को मार्ग में भेड़िए मिले । मेड़ियों ने उन सियारों को जब यों भागते हुए देखा तो उनसे पूछा - "तुम इस प्रकार क्यों भाग रहे हो ?"
उन्होने कहा - "एक अजीब प्राणी अद्भुत शब्द करता हुआ भागा आ रहा है। तुम भी भाग चलो।"
भेड़िए सियारों का कथन सुनकर भयात्रान्त हो गये । उनके साथ भाग छूटे ।
भागते हुए सियारों और भेड़ियों को आगे जाने पर बाघ मिले । उन्होंने भी पूछने पर जब उनसे विचित्र प्राणी के सम्बन्ध में सुना तो वे डर गये, भागने लगे ।
यों सियार, भेड़िए और बाघ भय के मारे भागे जा रहे थे कि आगे उन्हें चीते मिले । चीतों ने उनसे भागने का कारण पूछा, उन्होंने पूर्ववत् वैसा ही बताया - एक अजीब प्राणी आ रहा है । चीते भी उन्हीं की ज्यों उनके साथ-साथ भागने लगे ।
सियार मौत के मुँह में
रास्ते में एक सिंह बैठा था । उसने सियारों, भेड़ियों, बाघों और चीतों को भागते
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