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________________ ६०४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ १५. बाघ का चमड़ा प्रोढ़ सियार : सीहचम्म जातक : सीहकोत्थुक जातक : दद्दर जातक नकली आवरण से कुछ समय लोग भुलावे में रह सकते हैं, किन्तु, जब असलियत प्रकट हो जाती है, तो नकली आवरण द्वारा लोगों को ठगने वाला बड़ा कष्ट पाता है, तिरस्कृत होता है, उसे कहीं-कहीं अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। __ वास्तविकता कभी न कभी प्रकट हो ही जाती है; क्योंकि कृत्रिमता का संरक्षण व्यक्ति चिरकाल तक नहीं कर पाता । न चाहते हुए भी उसकी स्वाभाविकता उसके स्वर, व्यवहार आदि द्वारा भी व्यक्त हो जाती है । उपर्युक्त तथ्य की द्योतक आख्यायिकाएँ कथात्मक साहित्य में अनेक रूप में प्राप्त होती हैं। जैन आगम-वाङ्मय के अन्तर्गत वृहत्कल्प भाष्य एवं वृत्तिपीलिका में एक ऐसे सियार की कहानी है, जो बाघ का चमड़ा ओढ़ था। गले में घंटी बंधी थी। उसके इस नकली रूप को असली जानकर चीते तक उससे भयभीत हो, भागने लगे। सिंह को जब वास्तविकता का पता चला तो उसने सियार को तत्क्षण मार डाला। बौद्ध-वाङ्मय के अन्तर्गत सोहचम्म जातक, सोहकोत्थुक जातक तथा दद्दर जातक में इसी आशय की कथाएँ हैं। सोहचम्म जातक में एक ऐसे गधे की कहानी है, जो सिंह-चर्म ओढ़ था । सब भयभीत थे। वह धान और जो के खेतों में खुशी-खुशी चरता, किन्तु, रेंकने पर जब उसका रहस्य खुल गया तो गांव वासियो ने उसे पीट-पीट कर जान से मार डाला। ___ सीहकोत्थुक जातक में शृगाली-प्रसूत सिंह-शावक की कथा है, जो आकार-प्रकार में अपने पिता सिंह के सदृश था, पर, उसका स्वर उसकी माता शृगाली के समान था। एक बार वह शृंगाली-प्रसूत सिंह-शावक शृंगाल के स्वर में बोला तो उसके सिंही-प्रसूत भाई को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पिता से जिज्ञासा की। पिता ने सारा रहस्य प्रकट किया और शृगालीप्रसूत शावक को समझाया कि फिर कभी ऐसा मत करना । तुम्हारे स्वर से असलियत प्रकट हो जाएगी, वन के सिंह जान जायेंगे कि यह शृगाल है। तुम संकट में पड़ जाओगे। दहर जातक में हिमाद्रि प्रदेशवासी सिंह और शृगाल की कथा है। वर्षा होने पर जब हर्षोन्मत्त सिंह गरजने लगे तो निकटवर्ती गुफा में रहने वाले शृगाल से नहीं रहा गया। वह भी अपने आप को वैसा प्रदर्शित करने हेतु अपनी बोली में चीखने लगा। अपने साथ चीखते-चिल्लाते एक शृंगाल को सुनकर सिंहों के मन में बड़ी जुगुप्सा हूई--यह अधम प्राणी हमारे स्वर में स्वर मिलाकर गरजने की स्वांग कर रहा है। सिंहों ने गरजना बन्द कर दिया। ___इन तीनों जातकों के कथानक के सन्दर्भ में कोकालिक नामक भिक्षु है, जो बड़ा अज्ञ था, किन्तु अपना सामर्थ्य एवं योग्यता न जानता हुआ भी सस्वर सूत्र-पाठ का दंभ करता था । जब भी वह सूत्र-पाठ के लिए उद्यत होता, यथावत् रूप में पाठ नहीं कर पाता, सब के Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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