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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड:३
रहो। मैं प्रासाद के सर्वोच्च तल में निवास करूंगा, श्रमण-धर्म का पालन करूंगा।" ऐसा आदेश देकर सेनापति की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किये बिना वह महल के ऊँचे तल्ले में चला गया। जैसा सोचा था । तदनुसार साधनापूर्वक रहने लगा।
प्रवज्या की उत्कण्ठा
राजा के यों साधना-रत रहते चार महीने व्यतीत हो गये। उसे संसार नरक-सदृश प्रतीत होने लगा। वह मन-ही-मन परिकल्पना करने लगा-मेरे जीवन में वह दिन कब आयेगा, जब इन्द्रलोक-सदृश वैभवपूर्ण, ऐश्वर्य पूर्ण मिथिला नगर का परित्याग कर मैं हिमाद्रि पर जाऊंगा, प्रवजित हूँगा।
यह घटना तब की है, जिन दिनों मनुष्यों का आयुष्य दस सहस्र वर्ष का होता था। राजा सात हजार वर्ष तक राज्य-वैभव में रहा, राज्य किया। जब उसका आयुष्य तीन हजार वर्ष बाकी रहा, तो उसने अपने जीवन को नया मोड़ दिया। वह साधना-रत हआ। चार मास पर्यन्त घर में रहा, साधना में रहा, किन्तु, इससे उसे परितोष नहीं हुआ। इसे उसने अपने लिये पर्याप्त नहीं माना । उसने निश्चय किया, मैं इस वेष में-~-गृही के वेष में यहाँ रहता रहूं, मुझे रुचता नहीं। मुझे प्रव्रज्या ले लेनी चाहिए, प्रवजित का वेष अपना लेना चाहिए।
अभिनिष्क्रमण
राजा ने किसी को बिना कुछ कहे, अपने परिचारक को आदेश दिया-तुम बाजार जाओ, काषाय-वस्त्र तथा मृत्तिका-पात्र खरीद लाओ। ध्यान रहे, इस सम्बन्ध में किसी से कुछ कहना नहीं है। परिचारक ने वैसा ही किया। फिर राजा ने नापित को बुलाया। माथे के बाल, दाढ़ी-मूंछ के बाल-सब मुंडवा लिये। नाई को पारितोषिक देकर विदा किया । राजा ने एक काषाय-वस्त्र पहना, एक ओढ़ा और एक ओर अपने कन्धे पर डाल लिया। मत्तिका-पात्र एक झोले में डाला, उसे कन्धे पर लटकाया। हाथ में एक लकड़ी ली। प्रत्येक बुद्ध की ज्यों वह अपने महल की छत पर कुछ देर घूमता रहा । उस रात को वहीं रहने का विचार कर उसने प्रात: वहां से अभिनिष्क्रान्त होने का निश्चय किया। प्रातःकाल हआ। वह वैभव-विलसित प्रासाद का परित्याग कर नीचे उतरने लगा।
महारानी का अवसाद : उपाय
उधर महारानी सीवळी देवी बड़ी आकुल थी। चार महीने व्यतीत हो गये, राजा को देखने का उसे अवसर नहीं मिला। सीवळी देवी के अतिरिक्त राजा के सात सौ पत्नियां और थीं। महारानी सीवळी ने अपनी सात सौ सपत्नियों को बुलाकर कहा--"राजा विरक्त हो गया है, हम उसे देखने चलें । तुम सब शृंगार करो, सुसज्जित हो जाओ, वासनामय हाव-भावों का प्रदर्शन कर राजा को रागानुबद्ध बनाने का प्रयत्न करना है।" रानियों ने पटरानी के कथनानुसार वैसा ही किया। उन्होंने उत्तमोत्तम वस्त्र धारण किये, आभूषण पहने, शृंगार किया। उन्हें साथ लिये सीवळो देवी महल की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी।
राजा महल से नीचे उतर रहा था । महारानी ने, अन्य रानियों ने उसे देखां, किन्तु, वे उसे पहचान नहीं पाई। उन्होंने सोचा कोई प्रत्येक बुद्ध होंगे, महाराज को उपदेश देने
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