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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
अवस्थित है । वह मस्तूल से नीचे कूदा । वह बड़ा पराक्रमशाली तथा शक्ति सम्पन्न था । जो मगर और कछुए उसे खाने को झपटे, उसने उनको तत्काल मार गिराया। उधर मिथिला में उसी दिन राजा पोळजनक का देहावसान हो गया ।
राजकुमार मणियों के से नीले रंग की लहरों पर सोने जैसे वर्ण के काष्ठ-पट्ट की ज्यों तैरने लगा। एक सप्ताह तक वह समुद्र के जल पर तैरता रहा। ज्योंही उपयुक्त समय होता, वह समुद्र के खारे पानी से अपना मुंह धो लेता, उपोसथ व्रत स्वीकार कर लेता । तब चारों दिशाओं के लोकपालों द्वारा मणिमेखला नामक देवकुमारिका सागर की परिरक्षिका के रूप में नियुक्त थी । उसे लोकपालों का यह आदेश था कि माता-पिता की सेवा करने वाले तथा वैसे ही श्रेष्ठ कार्य करने वाले, अन्यान्य उत्तम गुणों से युक्त पुरुष, जो सागर में डूबने योग्य न हों, यदि संयोगवश सागर में गिर पड़ें, तो उन्हें बचाना, उनका परिरक्षण करना उसका कार्य है । देव कन्या मणिमेखला अपने ऐश्वर्य और वैभव का आनन्द लूटने में निमग्न थी । उसे अपना कर्तव्य स्मरण नहीं रहा । उसने सहसा विचार किया, सात दिन व्यतीत हो गये हैं, मैंने सागर की ओर, वहाँ से सम्बद्ध अपने कर्तव्य की ओर कोई ध्यान नहीं दिया, अब मुझे उस ओर गौर करना चाहिए। उसने समुद्र की ओर दृष्टि फैलाई, महाजनककुमार को समुद्र में तैरते देखा। उसने कुमार के व्यक्तित्व, धैर्य और साहस का परीक्षण किया । वह कुमार की शालीनता एवं ऊँचे विचारों से प्रभावित हुई।
देव-कन्या ने राजकुमार से कहा- "महा पराक्रमशाली प्राज्ञ पुरुष ! बतलाओ, मैं तुम्हें कहाँ पहुँचाऊं ?"
राजकुमार ने कहा--"मैं मिथिला नगर जाना चाहता हूँ । तुम मुझे वहीं पहुँचाओ ।" मणिमेखला ने कुमार को अपने दोनों हाथों से उसी प्रकार उठा लिया, जैसे कोई फूलों की माला को उठाले । अपने प्यारे पुत्र को माता जिस प्रकार अपनी छाती से लगा लेती है, उसी प्रकार वह उसे अपनी छाती से लगाये आकाश में उड़ा ले गई । सात दिन तक समुद्र के नमकीन जल में रहने से कुमार का शरीर पक गया था, चमड़ी कुछ गलने-सी लगी थी । देवकन्या के दिव्य संस्पर्श से वह स्वस्थ हो गया । उसे नींद आ गई । देवकन्या ने उसे मिथिला पहुँचा दिया। वहाँ आम के बगीचे में मंगल - शिला पर उसे लिटा दिया । उद्यान के अधिष्ठातृ देवों को मणिमेखला ने कुमार के परिरक्षण का भार सौंपा और वह स्वयं अपने स्थान पर चली गई ।
राज्य-लाभ
जैसा ऊपर उल्लेख हुआ है, पोळजनक रुग्ण था । उसकी मृत्यु हो गई । उसके कोई पुत्र नहीं था, केवल एक कन्या थी । कन्या का नाम सीवळी देवी था। वह बहुत प्रज्ञावती एवं विवेकशीला थी ।
राजा जब मृत्यु- शय्या पर लेटा था, अपने अन्तिम सांस ले रहा था, तो अमात्यों ने, सामन्तों ने उससे पूछा - "राजन् ! आपके दिवंगत हो जाने के पश्चात् यह राज्य किसे दें ? राजसिंहासन पर किसे बिठाएं ?"
मौत की बाट जोहते राजा ने कहा- - "जो राजकुमारी सीवळी को रुचिकर हो, जिससे उसे समाधान हो, उसे ही यह राज्य सौंपा जाए ।" इतना कहकर राजा ने प्राण छोड़ दिए ।
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