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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड:३
लिए सभी अपेक्षित, समुचित व्यवस्थाएँ करो।" अपने शिष्यों को यों समझाकर आचार्य ने महारानी को अपने घर भिजवा दिया।
ब्राह्मण की पत्नी से विद्यार्थियों ने आचार्य का सन्देश कहा । ब्राह्मणी अपने पति की बहिन को आई जान प्रसन्न हुई। उसने जल गर्म किया, महारानी को स्नान कराया, उसके लिए बिछौना तैयार किया। उस पर उसे लिटाया । ब्राह्मण स्नानादि सम्पन्न कर अपने घर लौटा। भोजन का समय हुआ। वह भोजन करने बैठा। उसने अपनी पत्नी से कहा-'मेरी बहिन को भी बुलाओ, वह मेरे साथ ही भोजन करे।" ब्राह्मणो ने महारानी को बुलाया। सबने भोजन किया। यों सभी पारिवारिक सदस्य घुल-मिलकर रहने लगे। महारानी का बड़े सम्मान के साथ पालन-पोषण होने लगा।
पुत्र-जन्म
कुछ समय व्यतीत हुआ। महारानी के पुत्र उत्पन्न हुआ। बालक के पितामह का नाम महाजनक था। तदनुसार उसका नाम महाजनककुमार रखा गया। वह क्रमशः बड़ा होने लगा। वह उच्च संस्कार तथा बल-सम्पन्न था, शुद्ध क्षत्रियवंश में उत्पन्न था, खेलते समय दूसरे बालक उसे कभी कुपित कर देते तो वह उन को पीट डालता। पिटाई होने पर वे बालक जोर-जोर से रोने लगते । जब उन रोते हुए बालकों से कोई पूछता कि तुमको किसने पीटा तो वे कहते कि हमें विधवा के बेटे ने पीटा । जब कुमार ऐसा सुनता तो मन-ही-मन सोचता, ये मुझे विधवा का बेटा क्यों कहते हैं ? इस सम्बन्ध में अपनी माता से पूछूगा।
कुमार की जिज्ञासा
कुमार ने एक दिन अपनी माता से पूछा--'मां ! बतलाओ, मेरा पिता कौन है ? मां ने उसे फुसलाने के लिए कहा- ''बेटा ! ब्राह्मण तेरा पिता है।" बालक ने यह सुनकर अपने मन में सन्तोष मान लिया।
एक दिन की घटना है, फिर खेलते समय दूसरे बालकों ने उससे छेड़-छाड़ की। वह क्रुद्ध हो गया। उसने उनको पीट डाला। पिटे हुए बालकों ने फिर उसे विधवापुत्र कहा। इस पर वह बोला-"मुझे तुम लोग विधवापुत्र क्यों कहते हो ? मेरा पिता तो ब्राह्मण है।"
उन्होंने कहा- "तुम कैसे ब्राह्मण को अपना पिता कहते हो? ब्राह्मण तुम्हारे कुछ नहीं लगता।"
कमार ने सोचा-मेरी मां स्वेच्छा से मुझे मेरे पिता के सम्बन्ध में कछ बतलाना नहीं चाहती। मैं उसे यह बतलाने के लिए बाध्य करूंगा।
कुमार अपनी मां का दूध चूंघ रहा था। दूध चूंचते समय उसने अपनी मां के स्तन में दाँत गड़ा दिये और बोला-"सही-सही बतलाओ-मेरा पिता कौन है ? यदि नहीं बतलाओगी तो तुम्हारे स्तन को अपने दांतों से काट डालूंगा।"
___ महारानी ने कहा--"वत्स ! तुम मिथिला नरेश राजा अरिट्ठजनक के पुत्र हो । तुम्हारे पिता का तुम्हारे पितृव्य पोळजनक ने वध कर डाला। तुम गर्भ में थे। मैं गर्भ-रक्षण हेतु इस नगर में आई। इस ब्राह्मण ने मुझे अपनी छोटी बहिन माना । बड़े भाई की ज्यों मेरा पालन-पोषण किया। वस्तुस्थिति यह है बेटा !" यह सुनकर कुमार के मन मे सन्तोष हुआ। अब जब कभी खेल-कूद के लड़ाई-झगड़े में दूसरे बालक यदि उसे विधवापुत्र कहते तो वह बुरा नहीं मानता, नाराज नहीं होता।
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