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________________ ५८२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन इस पर ब्रह्मदत्त कुमार के सारथि ने कहा "अक्कोधन जिने कोचं, असाधु साधुना जिने, जिने करियं दानेन, सच्चेन अलिकवादिनं । एतादिसो अयं राजा, मग्गा उय्याहि सारथि ॥" "मेरा राजा क्रोध को अक्रोध से-शांति से जीतता है, असाधु को साधुतापूर्ण व्यवहार से जीतता है, कृपण को दान द्वारा जीतता है, असत्यवादी को सत्य से जीतता है। सारथि ! मेरा राजा ऐसा है । तू इसलिए रास्ता देने के लिए पीछे हट जा। मेरा राजा ही पहला मार्ग पाने का अधिकारी है।" । यों कहे जाने पर कोशल-नरेश मल्लिक तथा उसका सारथि–दोनों रथ से नीचे उतर गये, घोड़ों को खोला, रथ को हटाया, वाराणसी के स्वामी ब्रह्मदत्तकुमार को रास्ता दिया। ब्रह्मदत्त कुमार ने कोशल नरेश को यह उपदेश दिया कि प्रत्येक राजा को ऐसा ही होना चहिए। तत्पश्चात् ब्रह्मदत्तकुमार वाराणसी गये। वहाँ दान, धर्म आदि पुण्य कार्य करते रहे । अन्त में देह त्याग कर स्वर्गगामी हुए। मल्लिक द्वारा ब्रह्मदत्त कुमार का गुणानुसरण कोशल नरेश मल्लिक ने वाराणसी. के स्वामी ब्रह्मदत्तकुमार का उपदेश ग्रहण किया। वह अपने जनपद में गया। अपने दोष बताने वाले की खोज करना बंद कर अपने नगर में पहुँचा। वहाँ दान आदि पुण्य कार्य करता रहा । अन्त में स्वर्ग सिधार गया। उस समय कोशल नरेश राजा मल्लिक का सारथि मोग्गलान था। कोशल नरेश आनन्द था वाराणसी के स्वामी ब्रह्मदत्त कुमार का सारथि सारिपुत्त था। वाराणसी का राजा ब्रह्मदत्तकुमार तो मैं ही था। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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