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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग — इभ्यपुत्रों की प्रतिज्ञा : राजोवाद जातक ५८१
बड़े-छोटे का विवाद
राजा मल्लिक के सारथि ने वाराणसी के राजा के सारथि से कहा- "अपना रथ पीछे हटा लो।"
वाराणासी के राजा का सारथि बोला- “तू ही अपना रथ हटा ले । मेरे रथ पर वाराणसी के अधिपति महाराज ब्रह्मदत्तकुमार आसीन हैं ।'
"
दूसरा सारथि बोला- "मेरे रथ में कोशल राज्य के अधिपति महाराज मल्लिक विराजित हैं । तू ही अपना रथ पीछे हटाकर मेरे राजा के रथ के लिए स्थान बना ।
"
वाराणसी के राजा का सारथि विचार करने लगा वाराणसी का अधिपति भी राजा है, यह भी राजा है, क्या किया जाना चाहिए। सहसा उसे एक उपाय सूझ पड़ा। उसने मन-ही-मन कहा— दोनों राजाओं में जो अवस्था में छोटा होगा, उसका रथ पीछे हटवाकर, जिसकी आयु बड़ी होगी, उसके रथ के लिए, उसके लिए स्थान करवाया जा सकता है । यों विचार कर उसने दूसरे सारथि से पूछा कि कोशल नरेश की आयु क्या है ? सारथि ने अपने राजा की आयु बतलाई, पर, संयोग ऐसा बना कि दाराणसी के स्वामी ब्रह्मदत्तकुमार की भी वही अयु निकली । समस्या का समाधान नहीं हुआ तो उन दोनों राजाओं के राज्य का विस्तार, सेना की संख्या, सम्पत्ति, राज्य, कीर्ति, जाति, गोत्र एवं कुल परम्परा आदि की तुलना की गई। एक विचित्र संयोग था— सेना, सम्पत्ति, कीर्ति, जाति, गोत्र एवं कुलपरम्परा आदि सभी बातों में दोनों में सदृशता थी। दोनों का ही राज्य तीन-तीन सौ योजन SAT विस्तार लिये था । समस्या का समाधान नहीं निकला ।
शील की कसौटी
तब वाराणसी के राजा के सारथि ने सोचा की शील की विशेषता के आधार पर समस्या समाधान करना चाहिए। उसे ही जगह देनी चाहिए, जो अधिक शील सम्पन्न हो । उसने दूसरे सारथि से पूछा - "तुम्हारे राजा का शील कैसा है ?"
उस सारथि ने अपने राजा के अवगुणों को भी गुणों के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा
"दहं वळहस्स खिपति मल्लिको मुवुना मुदु, साधुम्पि साधुना जेति असाधुम्पि असाधुना, एतादिसो अयं राजा भग्गा उय्याहि सारथि ॥
मेरा राजा मल्लिक कठोर व्यक्ति के साथ कठोरता का व्यवहार करता है । साधु पुरुष को वह साधुता - पूर्ण व्यवहार से जीतता है और असाधु को असाधुता पूर्ण व्यवहार से । सारथि ! मेरा राजा ऐसा है, तु उसके लिए रास्ता छोड़ दे । "
वाराणसी के राजा के सारथि ने कहा- -- "अरे ! क्या तुमने अपने राजा के गुण बतला दिये ?"
मल्लिक का सारथि बोला- “हाँ।"
वाराणसी के राजा के सारथि ने कहा – “यदि ये गुण हैं, तो फिर दुर्गुण कौन
हैं ?"
कोशल नरेश का सारथि कहने लगा - "अच्छा! मैंने जो बतलाये, वे अवगुण ही सही, जरा बतलाओ, तुम्हारे राजा में कौन-कौन से गुण हैं ?"
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