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तत्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-इम्यपुत्रों की प्रतिज्ञा : राजोवाद जासक ५७६
सार : शिक्षा
जिस प्रकार श्रेष्ठिपुत्र ने अपने श्रम, लगन तथा उद्योग द्वारा विपुल धन अजित कर प्रतिष्ठा प्राप्त की, उसी प्रकार तपस्वी जन अपने तप एवं संयम द्वारा पूजित, प्रतिष्ठित होते हैं।'
राजोवाद जातक भगवान् बुद्ध द्वारा कोशल-नरेश को प्रेरणा
एक दिन की बात है, कोशल नरेश एक ऐसे अभियोग (मुकदमे) का निर्णय कर, जो वस्तुतः दुनिर्णय था, प्रातःकालीन भोजन कर गीले हाथों ही अलंकार-विभूषित रथ में आरूढ़ हुए और भगवान् बुद्ध के पास आये । भगवान् के चरण खिले हुए कमल जैसे सुहावने थे। राजा ने उनका स्पर्श कर प्रणाम किया तथा वह एक ओर स्थित हुआ।
भगवान् ने पूछा-राजन् ! इतना दिन चढ़े कहाँ से आये ?"
राजा बोला-भते ! आज मेरे समक्ष एक ऐसे अपराध का मुकदमा था, जिसका निर्णय करना सरल नहीं था। उधर लगा रहा; अत: समय नहीं मिल पाया। अभी उसका निर्णय किया है। भोजन किया है. हाथ तक नहीं पोंछे, गीले ही हाथों आपके चरणों में उपस्थित हुआ हूं।"
भगवान् बोले- राजन् !धर्म द्वारा, न्याय द्वारा किसी अभियोग का निर्णय करना शुभ कर्म है । वह स्वर्ग का पथ है। तुम जैसों के लिए, जो सर्वज्ञ से उपदेश ग्रहण करते हैं, यह कोई आश्चर्य की बात नही है कि तुम धर्म द्वारा, न्याय द्वारा किसी अभियोग का निर्णय करो। आश्चर्य तो इस बात का है कि अब से पूर्व के वे राजा, जिन्होंने असर्वज्ञ--जो सर्वज्ञाता नही थे, ऐसे पंडितों का ही उपदेश सुना, धर्म द्वारा, न्याय द्वारा अभियोगों का निर्णय करते,
ते, छंद, द्वेष, भय तथा मोह-प्रसूत, पक्षपात-मूलक चार अगतियों से बचते, दश राजधर्मों के प्रतिकल नहीं जाते. धर्म के अनुसार राज्य-शासन करते, स्वर्ग के मार्ग का स्वर्गप्रदपथ का अनुसरण करते।"
ब्रह्मदत्तकुमार : न्यायपूर्वक राज्य
भगवान् से राजा ने जब संकेतित पूर्व जन्म की कथा कहने की प्रार्थना की तो भगवान् ने कहा:
पूर्व समय की बात है, वाराणसी में ब्रह्मदत्त नामक राजा राज्य करता था। बोधिसत्त्व उसकी पटरानी की कोख में आये । गर्भ सम्यक् रक्षित, परिपालित हुआ। बोधिसत्त्व यथासमय माता की कोख से बाहर निकले । नामकरण का दिन आया। उनका नाम ब्रह्मदत्तकुमार रखा गया।
वे क्रमशः बढ़ते गये । सोलह वर्ष की अवस्था हुई। वे तक्षशिला गये। वहाँ रहे, सब शिल्पों में निष्णात हुए। पिता की मृत्यु हो गई। वे राज्यासीन हुए। वे धर्म पूर्वक न्यायपूर्वक राज्य करने लगे। जो भी अभियोगों का निर्णय करते, राग आदि दुर्बलताओं से प्रभावित होकर नहीं करते । उनके द्वारा यों धर्मपूर्वक राज्य किये जाते रहने का यह प्रभाव
१. आधार-वसुदेव हिंडी, पृष्ठ ११६-११७
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