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________________ ५६२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ १२. राजा मेघरथ : कबूतर और बाज : शिवि जातक भारतीय वाङ्मय में दया, करुणा और तत्प्रसूत दान के प्रसंग में अनेक रोमांचक कथानक प्राप्त होते हैं, जहाँ मानव का हृदय-पक्ष बड़े निर्मल, उज्ज्वल एवं उत्कृष्ट रूप में उभरा है। बौद्ध-परम्परा में महायान के उद्भव के बाद करुणा का मानव द्वारा स्वीकार्य एक अति उत्तम गुण के रूप में विकास हुआ । निर्वाण के दो अन्यतम साधनों में 'महाशून्य' के साथ-साथ 'महाकरुणा' का स्वीकार इसी का द्योतक है । जैन साहित्य में प्रकृष्ट दयाशीलता एवं दानशीलता के सन्दर्भ के अनेक आख्यान प्राप्त होते हैं । राजा मेघरथ का कथानक एक इसी प्रकार का प्रसंग है । जैन वाङ्मय के सुप्रसिद्ध कथा - ग्रन्थ वसुदेव हिंडी में वह बहुत संक्षेप में वर्णित है । उत्तरवर्ती ग्रन्थों में उसका कुछ विस्तीर्ण, विकसित रूप प्राप्त है । शरण में आगत एक कबूतर की रक्षा हेतु राजा उसका पीछा करते हुए आये बाज और किसी तरह न मानने पर अपनी देह का मांस काट-काटकर दे देता है । बौद्ध वाङ्मय के अन्तर्गत शिवि जातक में शिविकुमार के रूप में उत्पन्न बोधिसत्त्व का आख्यान है । वहाँ करुणा का बड़ा रोमांचक रूप प्रकट हुआ है । शिविकुमार याचक को अपने नेत्र तक उखड़वाकर दे डालता है । कथात्मक तत्त्व की परिपुष्टि की दृष्टि से जैन तथा बौद्ध दोनों आख्यानों में देवों द्वारा की गई परीक्षा का संपुट लगा है । महायान के करुणा और दान पारमिता के सिद्धान्तों के जन-जनव्यापी प्रसार का अन्यान्य परम्पराओं पर भी प्रभाव पड़ा, ऐसा संभावित है । जैन दर्शन, जो करुणा-प्रधान न होकर अहिंसा प्रधान है, के अन्तर्गत कथा - वाङ्मय में 'महाराज मेघरथ' जैसे आख्यानों के उद्भव में इसकी उपजीवकता को असंभाव्य नहीं कहा जा सकता । महाभारत में भी शिवि-उपाख्यान के रूप में इसी प्रकार का कथानक वर्णित है । राजा मेघरथ : कबूतर श्रौर बाज कबूतर द्वारा अभय-दान की याचना राजा मेघरथ बड़ा धार्मिक था, अत्यन्त उदार था । उसके हृदय से करुणा एवं दया का अजस्र स्रोत बहता था । एक दिन वह अपनी पौषधशाला में पौषध स्वीकार किये आत्म-चिन्तन एवं ध्यान में संलग्न था । वातावरण में एक दिव्य शान्ति व्याप्त थी । राजा धर्म भाव में तल्लीन था । सहसा दौड़ता-दौड़ता एक कबूतर आया और राजा की गोदी में गिर गया । कबूतर का सारा शरीर थर-थर काँप रहा था । उसकी दृष्टि में कातरता थी, करुणा की मिक्षा थी । उसने राजा मेघरथ से याचना की - “महाराज ! मुझे अभय-प्रदान कीजिए।" करुणा - विगलित राजा पक्षी की वाणी में दुःख साकार प्रतिबिम्बित हो उठा। राजा का हृदय करुणा Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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