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________________ ५६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ आदि गर्भवती जैसा बनाया। उसके पेट पर एक तकिया बाँधकर उसे बड़ा दिखाया। फिर वे कृष्ण द्वैपायन के पास आये और पूछा-'भन्ते ! यह कुमारी क्या उत्पन्न करेगी ?" तपस्वी कृष्ण द्वैपायन ने देखा, वासुदेव आदि राजाओं के विनाश का समय आ गया है । फिर तपस्वी ने यह ध्यान किया कि उसकी अपनी आयु कितनी शेष है । उसके ज्ञान में आया- आज ही उसकी मृत्यु है। कृष्ण द्वैपायन ने पूछा-'कुमारो ! यह ज्ञात कर तुम क्या करोगे ?" कुमारों ने बड़ा आग्रह किया-'आप पा कर बतायें ही।" तब तपस्वी बोला_"आज के सातवें दिन यह एक काष्ठ-खण्ड जन्मेगी। उससे वासुदेव-कुल का विध्वंस होगा। तुम उस लकड़ी के टुकड़े को जला कर राख कर देना। राख नदी में डाल देना।" कुमार बोले- 'दुष्ट तपस्विन् ! पुरुष प्रसव नहीं करते।" वे क्रुद्ध थे। उन्होंने तांत की रस्सी द्वारा वहीं उसका वध कर दिया। राजा ने जब यह सुना तो कुमारों को बुलाया और पूछा--"तुम लोगों ने तपस्वी की जान क्यों ली?" __कुमारों ने सारा हाल बताया। राजा भयभीत हो गया। उसने उस तरुण पर पहरा बिठा दिया, जिसे गर्भवती दिखाया गया था । सातवें दिन उसकी कुक्षि से एक लकड़ी निकली। लकड़ी को जलवाया और उसकी राख नदी में फिकवा दी। वह राख बहती-बहती नदी के मुहाने पर एक तरफ जा लगी। वहाँ एरण्ड का एक पेड़ उगा। परस्पर भीषण संघर्ष : विनाश एक दिन वासुदेव आदि राजा सपरिजन, सकुटुम्ब जल-क्रीडा हेतु नदी के मुहाने पर पहुँचे । वहाँ एक मण्डप बनवाया, उसे खूब सजवाया। वहाँ सबने खूब खाया-पीया। खेलही-खेल में उनमें परस्पर हाथा पाई होने लगी। वे लड़ने के लिए दो दलों में विभक्त हो गये। बुरी तरह लड़ पड़े । उन्होंने इधर-उधर देखा, कोई मुद्गर, दण्ड आदि दिखाई नहीं दिया। एक ने उस एरण्ड वृक्ष का एक पत्ता ले लिया । पत्ता ज्योंही हाथ में आया, वह काष्ठ का मूसल हो गया। उसने उस द्वारा औरों को पीटा। और भी उस एरण्ड के पत्ते लेते गये। पत्ते मूसल बनते गये। वे सब आपस में लड़ते गये और विनाश को प्राप्त हो गये । बलदेव की यक्ष के हाथ मौत सब मर गये, केवल चार व्यक्ति-वासुदेव, बलदेव, अञ्जनदेवी और पुरोहित बचे। चारों रथ पर आरूढ हुए और वहाँ से भाग निकले। वे कालमत्ति अटवी में पहुँचे । मुष्टिक मल्ल ने असितञ्जन नगर में कुश्ती-मण्डप में बलदेव के हाथों मरते समय यह संकल्प किया था कि वह यक्ष होकर उसे खायेगा। वह वहाँ यक्ष के रूप में पहले से ही पैदा हो चुका था। जब उसे विदित हुआ कि बलदेव आया है तो उसने देव-माया द्वारा वहीं एक ग्राम की रचना कर दी। स्वयं मल्ल का रूप एवं वेष धारण किया । “मैं चुनौती देता हूँ, मेरे साथ कौन कुश्ती लड़ेगा ?"-यों बोलता हुआ वह कूदने लगा, गरजने लगा, थापी मारने लगा। बलदेव ने उसे देखा तो वासुदेव से कहा- भाई ! इस के साथ मैं कुश्ती लडूंगा। वासुदेव द्वारा वैसा करने से रोके जाते रहने पर भी बलदेव रथ से नीचे उतरा, उसके समीप पहुँचा और थापी ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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