________________
२
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
अांकते हुए, पुण्यों का आचरण करता जाए, जिनका फल सुखप्रद है ।"
मृत्यु से कौन बचाए
जन्म और मृत्यु का गठबन्धन है। मृत्यु वह तथ्य है, जिसे कोई नहीं टाल सकता | संसार में रचे-पचे मनुष्य के लिए वह एक ऐसा भयावह सत्य है, जिसे मनुष्य सदा भूले रहने की विडम्बना से अपने को जोड़े रखता है । एक कल्पित एवं मिथ्या निर्भयावस्था अपने में पालता है, जो सर्वथा असत्य है, अति अलाभकर है। मरण का विस्मरण उसे धर्मोन्मुख नहीं होने देता । अतएव मृत्यु की अनिवार्यता अवश्यप्रापिता धर्मशास्त्रों में सदा से स्मरण कराई जाती रही है, जिससे मानव अपने जीवन में धर्म का, कर्तव्य का यथावत् अनुसरण करते रहने से कतराए नहीं, आमतौर पर वह कतराता है ।
अन्तकाल में मृत्यु मनुष्य को उसी प्रकार दबोच लेती है, पकड़कर ले जाती है, जैसे सिंह हरिण को दबोच लेता है, पकड़कर ले जाता है। उसके माता-पिता, भाई-बन्धु आदि उसे बिलकुल नहीं बचा सकते । २
जब अन्तक — मृत्यु का देवता- यमराज आ पकड़ता है, तब न पुत्र ही बचा सकते हैं, न पिता, न बन्धु बान्धव और न जातीय जन ही रक्षा कर सकते हैं।
संशयशीलता का कुफल
जो पद-पद पर संशयाविष्ट रहता है, वह जीवन के विशाल राजपथ पर सफलतापूर्वक आगे नहीं बढ़ सकता। वह शान्ति, स्थिरता तथा समाधिनिष्ठता स्वायत्त नहीं कर सकता । जैन एवं बौद्ध शास्त्रकारों ने इस तथ्य को समान रूप में उजागर किया है ।
जो विचिकित्सा-समापन्न — शंकायुक्त या संशयशील होता है, वह समाधिआत्मशान्ति प्राप्त नहीं करता । *
भगवान् ने कहा - "जो कथंकथी है- संशयशील है, सन्देहयुक्त है, मैं उसे मुक्त
१. उपनीयति जीवितं अप्पमायु, जरूपनीतस्स न सन्ति ताणा । एतं भयं मरणं पेक्खमाणो, पुञ्ञानि कयिराथ सुखावहानि ।।
- अंगुत्तर निकाय, पृष्ठ १५६
२. जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेह हु अंतकाले । न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मं स हरा भवंति ।।
- उत्तराध्ययन सूत्र १३.२२ ३. न सन्ति पुत्ता ताणाय, न पिता नापि बन्धवा । अन्तकेनाधिपन्नस्य, नत्थि नातिसु ताणता ॥
[ खण्ड : ३
- धम्मपद २०.१६
४. वितिगिछ- समावन्नेणं अप्पाणेणं णो लभति समाधि । - आचारांग सूत्र १.५.५.२
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org