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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक उपसागर का कंसभोग में आगमन तभी की बात है, उत्तर मथुरा में महासागर नामक राजा का राज्य था। उसके दो पुत्र थे। उसके नाम सागर एवं उपसागर थे। महासागर की मृत्यु हो गई। सागर राजा हुआ तथा उपसागर उप राजा हुआ। उसागर एवं उपकंस ने एक ही गुरुकुल में साथ-साथ विद्याध्ययन किया था; अतः दोनों में परस्पर मैत्री थी। उपसागर ने अपने भाई के अन्तःपुर में दुष्कृत्य किया। उसे भय हुआ, भेद खुल जाने पर मैं कहीं पकड़ा नहीं जाऊं; इसलिए वह उत्तर मथ रा से भागकर कंस भोग में अपने मित्र उपकंस के पास पहुँच गया। देवगर्मा के प्रति आसक्ति उपकंस ने उपसागर का अपने बड़े भाई राजा कंस से परिचय कराया। राजा ने उसका स्वागत किया। उसे बहुत धन दिया। राजा के यहाँ जाते समय उपकंस की दृष्टि एक खंभे पर खड़े उस महल पर पड़ी, जिसमें देवगर्भा का निवास था। जब उसे उस सम्बन्ध में ज्ञात हुआ तो उस के मन में देवगर्भा के प्रति आसक्ति उत्पन्न हो गई । संयोग बना, देवगर्भा ने एक दिन उसे, जब वह उपकंस के साथ राजा की सेवा में जा रहा था, देख लिया। उसने अपनी दासी नन्दगोपा से पूछा- “यह कौन है ?" नन्दगोपा ने उसे बताया कि यह उत्तर मथुरा के राजा महासागर का द्वितीय पुत्र उपसागर है। देवगर्भा उसकी ओर आकृष्ट हुई । नन्दगोपा का सहयोग देवगर्भा से मिलने की उत्सुकता के कारण एक दिन उपसागर ने नन्दगोपा को रिश्वत देकर पूछा - "बहिन ! क्या तुम मुझे देवगर्भा से मिला सकोगी?" वह बोली"स्वामिन् ! यह कोई कठिन कार्य नहीं है। उसने देवगर्भा को सूचित किया। देवगर्भा सहजतया उपसागर की ओर आकृष्ट थी ही, इसलिए उसने अपनी स्वीकृति दे दी। नन्दगोपा ने उपसागर को संकेत किया और तदनुसार वह रात को उसे महल में चढ़ा ले गई । देवगर्भा के साथ उसका यौन सम्बन्ध हुआ। यह क्रम चलता रहा। देवगर्भा के गर्भ रह गया। कुछ समय बाद उसका गर्भवती होना प्रकट हो गया। राजा कंस तथा उपराजा उपकंस ने नन्दगोपा से पूछा । नन्दगोपा घबरा गई। रहस्य को छिपा न सकी। उसने उनसे अभय-दान की याचना की। उन्होंने अभयदान दिया। नन्दगोपा ने रहस्य प्रकट कर दिया। देवगर्भा और उपसागर का सम्बन्ध कंस और उपकंस ने विचार किया-बहिन की हत्या करना ठीक नहीं होगा । यदि उसके पुत्री उत्पन्न होगी तो उसे भी नहीं मारेंगे । यदि पुत्र होगा तो उसका वध कर डालेंगे। उन्हें यह उपयुक्त लगा कि देवगर्भा उपसागर को दे दी जाए। उन्होंने वैसा ही किया । गर्भ का परिपाक होने पर देवगर्भा ने एक कन्या को जन्म दिया। भाई प्रसन्न हुए। उन्होंने उसका नाम अञ्जन देवी रखा। उन्होंने उपसागर और देवगर्भा को निर्वाह हेतु गोवड्ढमान (गोवर्धमान) नामक गाँव दे दियो । दोनों वहीं रहने लगे। देवगर्भा फिर गर्भवती हुई। नन्दगोपा भी उसी दिन गर्भवती हुई । गर्भ का परिपाक होने पर एक ही दिन देवगर्भा के पुत्र हुआ तथा नन्दगोपा के पुत्री उत्पन्न हुई । देवगर्भा को यह भय था कि उसके भाई उसके पुत्र को मार डालेंगे; इसलिए अपने पुत्र को गुप्त रूप से नन्दगोपा के पास पहुँचा दिया तथा उसकी पुत्री को अपने पास मंगवा लिया । जब देवगर्भा ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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