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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
घट जातक
उपासक को पुत्र-शोक
श्रावस्ती में भगवान् बुद्ध का एक गृहस्थ उपासक रहता था । उसके । पुत्र की मृत्यु हो गई । पुत्र-शोक से वह अत्यन्त दुःखित हुआ । वह अपना भान भूल गया । विक्षिप्त जैसा हो गया । न वह स्नान करता, न भोजन करता, न अपमा कार्य-व्यवसाय ही देखता और न भगवान् बुद्ध की सेवा में उपस्थित होता । 'मेरा प्यारा बेटा मुझे छोड़कर चला गया, मुझ से पहले चला गया;' इत्यादि शोक-वाक्य कहता हुआ वह गृहस्थ बिलखता रहता । शास्ता द्वारा उपदेश
[ खण्ड : ३
शास्ता ब्रह्म-वेला में लोक पर चिन्तन कर रहे थे । उन्होंने देखा - --उनका वह उपासक, जो पुत्र-शोक से व्यथित है, स्रोतापत्ति फल प्राप्ति की संभावना लिये हुए है। भिक्षाटन हेतु श्रावस्ती पधारे । भिक्षा ग्रहण की । भिक्षुओं को अपने-अपने कर्त्तव्यों में प्रेरित किया । स्वयं स्थविर आनन्द को साथ लेकर पुत्र-शोक से पीड़ित उपासक के घर गये । शास्ता के आगमन की सूचना करवाई गई। उसके घर के लोगों ने आसन बिछाए, शास्ता को बिठाया । आनन्द भी बैठे । पारिवारिक जन उस दुःखित पुरुष को पकड़कर शास्ता के पास लाये । उसने शास्ता को प्रणाम किया तथा एक ओर बैठ गया ।
शास्ता ने उसको करुणार्द्र शब्दों में कहा - " उपासक ! अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु हो जाने से चिन्तित हो ?"
वह बोला - "हाँ, भन्ते !"
शास्ता बोले - " पूर्व समय में भी ऐसा हुआ है, पुत्र की मृत्यु हो जाने पर समझदार पुरुष भी शोक से व्याकुल हो गये थे । पर, उन्होंने पण्डितों-ज्ञानीजनों का कथन सुना और इस बात की यथार्थता को समझा कि मृत व्यक्ति वापस नहीं लौट सकता, उसकी पुनः प्राप्ति असम्भव है । फिर उन्होंने जरा भी शोक नहीं किया ।
उस सम्बन्ध में भगवान् ने सम्बद्ध कथा का इस प्रकार आख्यान किया
कंस, उपकंस : देवगर्भा
पूर्वकाल में उत्तरापथ में कंसभोग नामक राज्य था । असितञ्जन नामक नगर था, जो उसकी राजधानी था। वहाँ के राजा का नाम मकाकंस था। उसके दो पुत्र थे। उनके नाम क्रमशः कंस तथा उपकंस थे। उसके एक पुत्री थी । उसका नाम देवगर्भा था। जिस दिन देवगर्भा का जन्म हुआ, ज्योतिर्विद् ब्राह्मणों ने भविष्य वाणी की कि इसकी कुक्षि से उत्पन्न होने वाले पुत्र द्वारा कंस - गोत्र कंस - वंश का विनाश होगा । अत्यधिक स्नेह के कारण राजा कन्या का वध नहीं करवा सका। उसने सोचा- आगे चलकर भाई इस सम्बन्ध में लेंगे ।
का,
कुछ सोच
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राजा मकाकंस का आयुष्य पूर्ण हुआ । उसकी मृत्यु हो गई । तब कंस राजा हुआ तथा उपकंस उपराजा हुआ । देवगर्भा का प्रसंग आया। उन्होंने विचार किया -- यदि हम बहिन की हत्या करेंगे तो हमारा लोक में अपयश होगा । अच्छा यह है, हम इसका किसी के साथ विवाह ही न करें । इसे पति शून्य रखें और इसका पालन करें। तदर्थ उन्होंने एक स्तंभ पर ऊँचा प्रासाद बनवाया तथा उसमें उसको रखा। उसके पास एक परिचारिका रख दी। उसका नाम नन्दगोपा था । नन्दगोपा का पति अन्धकवेणु नामक दास वहाँ प्रहरी के रूप में नियुक्त हुआ ।
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