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५५० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ देव बोला- 'तुम भी तो छ: मास से अपने भाई की मृत देह को ढोये चल रहे हो, व्यर्थ निरर्थक परिश्रम उठा रहे हो, फिर मुझे क्या कहते हो ?"
बलभद्र ने रोषावेश में कहा--"क्या मेरा भाई मरा हुआ है ?" देव भी उसी लहजे में बोला- क्या मेरी गाय मरी हुई है ?"
बलभद्र- "वह घास नहीं खाती, पानी नहीं पीती, हिलती डुलती नहीं, चलती नहीं; क्योंकि वह मरी हुई है।"
देव-"फिर तुम क्यों दिङ्मूढ़ हो, तुम्हारा भाई न खाता है, न पीता है, न हिलताडुलता है, न चलता है, बड़ा आश्चर्य है, तुम उसे कैसे जीवित मानते हो?"
बलभद्र चुप हो गये। वे विचार में पड़ गये। देव ने फिर कहा- सोचते क्या हो, यदि विश्वास न हो तो जांच कर के देख लो।"
बलभद्र ने कृष्ण की मृत देह को अपने वन्धे से उतारा। वे उसे गौर से देखने लगे। देह तीव्र दुर्गन्ध से भरी थी! जीवित होने का कोई लक्षण उसमें अवशेष नहीं रहा था। बलभद्र विचारों की गहराई में खोने लगे।
तभी देव ने सिद्धार्थ सारथि का रूप बनाया और बलभद्र से कहा- मैं पूर्व जन्म में आपका रथ-चालक सिद्धार्थ था। मैंने सयममय जीवन की आराधना की। परिणामस्वरूप मैं देव-योनि में उत्पन्न हुआ। जब अपने मनुष्य-भव में मेरे मन में दीक्षा ग्रहण करने का भाव उदित हुआ, तब मैंने आपसे अनज्ञा मांगी। आपने प्रसन्ता-पूर्वक दीक्षा की अनज्ञा देते हुए बड़ी आत्मीयता से मुझे कहा कि जब तुम देव-योनि प्राप्त कर लो तो मुझे उस समय प्रतिबोध देना, जागरित करना, जब मैं पथ-च्युत होने लगू, जब मुझे मार्ग पर लाना नितांत अपेक्षित हो।
___ "उसी बात को स्मरण रखता हुआ मैं इस समय आपके पास उपस्थित हुआ हूँ। आपको सन्मार्ग पर लाने के अभिप्राय से मैंने ये दृश्य उपस्थित किये हैं। मोह अत्यन्त अनर्थकर है। उसका परित्याग कीजिए। सत्य को पहचानिए। इस मत कलेवर की अन्त्येष्टि कीजिए तथा संयम की आराधना में लगिए।
"भगवान् अरिष्टनेमि ने जो भविष्यवाणी की, सब उसी रूप में घटित हुआ है। वासुदेव कृष्ण की मौत जराकुमार के बाण द्वारा हुई है। आप भाई के ममत्व और मोह के कारण उनके मत कलेवर को छः मास से ढोये चल रहे हैं।"
बलभद्र द्वारा प्रवज्या : घोर तप
सिद्धार्थ देव के प्रतिबोध-वाक्यों से बलभद्र की सुषुप्त चेतना पुनः जागरित हो गई। उनका मोहावरण अपगत हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण के मृत शरीर की यथाविधि अन्त्येष्टि की।
____ सर्वदर्शी, सर्वज्ञानी भगवान् अरिष्टनेमि ने बलभद्र का अन्तर्भाव जानकर एक विद्याधर मुनि को उनके पास भेजा। मुनि ने बलभद्र को धर्म सुनाया । बलभद्र विरक्त हुए, प्रवजित हुए।
सिद्धार्थ देव ने मुनि-द्वय को सभक्ति वन्दन-नमन किया और वह स्वर्ग में चला गया।
__मुनि बलभद्र घोर तप में लीन रहने लगे। एक बार का प्रसंग है, एक मास के तप के पारणे हेतु भिक्षार्थ वे नगर में आ रहे, थे। उधर एक स्त्री कुएं पर जल भरने आयी थी।
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