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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५४६ उत्तर कहां से मिलता, आत्मा का तो देह-पंजर से महाप्रयाण हो चुका था। बलभद्र ने जब देखा कि उनके सभी प्रयत्न निष्फल सिद्ध हो रहे हैं तो श्रीकृष्ण के मृत शरीर को उन्होंने उठाया और उसे अपने कन्धे पर रख लिया। शोक से पागल बने वे वन-वन भटकते रहे । खान-पान आदि सब कुछ भूल गये। अपनी सुध-बुध खो बैठे। मोह का कितना भारी आवेग बह था, चिरनिद्रा को, जिससे फिर कोई कभी जागता नहीं, वे साधारण निद्रा समझे रहे । इस स्थिति में छः मास का समय व्यतीत हो गया। सिद्धार्थ देव द्वारा प्रतिबोध __ बलभद्र के सारथि सिद्धार्थ ने, जो देव-योनि में था, अवधि-ज्ञान द्वारा बलभद्र की यह स्थिति देखी। बलभद्र ने मनुष्य-भव में उससे वायदा लिया था, देव होने पर वह उन्हें उस समय प्रतिबुद्ध करेगा, जब कभी वे मार्ग-च्युत होंगे। देव ने देखा, यह अवसर है, बलभद्र को इस दुरवस्था से उसे उबारना चाहिए। देव ने माया द्वारा एक पत्थर के रथ की रचना की। वह उस में बैठा। नीचे उतरने लगा। रथ पर्वत के उबड़-खाबड़ स्थल में लुढ़क गया, उलट गया, धड़ाम से नीचे गिर पड़ा, टुकडे टुकड़े हो गया। देव पत्थर के टुकड़ों को फिर जोड़ने का प्रयास करने लगा। बलभद्र यह सब देख रहे थे। उन्होंने कहा -"अरे ! तुम कितने बड़े मूर्ख हो, क्या कभी पत्थर के टूटे हुए टकड़े पूर्ववत जुड़ सकते हैं ?" देव बोला-'जब मृत पुरुष फिर जीवित हो सकता है तो पाषाण के रथ के खण्ड क्यों नहीं जुड़ सकते, फिर रथ क्यों नहीं तैयार हो सकता?" बलभद्र ने सोचा- यह बड़ा अज्ञ पुरुष है, कौन बकवास करे।" वे वहाँ से आगे बढ़ गये। फिर देव ने एक कृषक का रूप बनाया । जहाँ बलभद्र थे, वह प्रकट हुआ। वहाँ वह पाषाण पर कमल रोपने का प्रयत्न करने लगा। बलभद्र ने उसे देखा तो कहा-“तुम कैसे मूढ हो, क्या पाषाण पर भी कभी कमल उगते हैं ?" देव ने उत्तर दिया- "जरा आप भी सोचिए, क्या मृत पुरुष भी कभी जीवित होते हैं ?" बलभद्र ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और वे आगे चले गये। देव भी आगे बढ़ गया। उसने माया द्वारा एक सूखे ढूंठ की रचना की। उसमें जल सींचने लगा। बलभद्र उसे देखकर बोले-"तुम महामूढ हो। सूखा ठूठ भी क्या कभी जल सींचने से हरा होता है ?" देव ने प्रत्युत्तर दिया- "जब तुम्हारा मरा हुआ भाई जिन्दा हो सकता है तो फिर सूखा लूंठ क्यों नहीं हरा हो सकता है ?" बलभद्र ने फिर उस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, आगे बढ़ गये। देव भी उसी ओर चला। उसने एक गोपालक का रूप बनाया। एक मृत गाय की विक्रिया की। उसे घास खिलाने का उपक्रम करने लगा। बलभद्र ने उसे देखा और कहा-"अरे ! तुम क्या कर रहे हो ? क्या मुर्दा गाय कभी घास खाती है ? तुम्हार। प्रयत्न व्यर्थ है।" ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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