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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड :३ गये। उन्होंने भगवान् के सान्निध्यवर्ती मुनिवृन्द पर दृष्टि दौड़ाई तो उन्हें अपना अनुज, नवदीक्षित मुनि गजसुकुमाल नहीं दीखा । उन्होंने भगवान् अरिष्टनेमि से पूछा"भगवन् ! मुनि गजसुकुमाल नहीं दिखाई दे रहे हैं।"
भगवान् ने कहा-"राजन् ! एक ही रात में उसने अपना साध्य साध लिया, लक्ष्य पूर्ण कर लिया, वह कृत-कृत्य हो गया।"
श्रीकृष्ण ने विस्मय-विमुग्ध होकर कहा- "भगवन् ! गजसुकुमाल ने एक ही दिन में अपना लक्ष्य पूरा कर लिया, क्या अद्भुत साधना थी वह ?"
भगवान् बोले-"इसमें अचरज की कोई बात नहीं है । आत्मा में असीम तथा अनन्त शक्ति है । आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसे उज्जागरित किया जाए। फिर नवदीक्षित मुनि को एक सहयोगी भी प्राप्त हो गया।"
श्री कृष्ण बड़े मेधावी थे, प्रत्युत्पन्नमति थे। वे झट समझ गये, हो न हो, किसी ने विद्वेष और वैमनर य-वश उन्हें घोर कष्ट दिया है, भयानक उपसर्ग किया है, जिसे उन्होंने अत्यन्त समभाव से सहा है, शुदात्मभाव की अत्यन्त उत्कृष्ट भूमिका में अवस्थित हो, उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है।
गजसुकुमाल के लिए किसी ने उपसर्ग किया, यह सोचते ही उनकी आँखें लाल हो गईं। फिर, भी उन्होंने अपने को संयत-सन्तुलित रखने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने विनयपूर्वक भगवान् से पूछा-"प्रभो ! वैसा अधम कार्य किसने किया ?" ।
मगवान्- "वह इसी नगरी में रहता है, किन्तु, तुम उसके प्रति विद्वेष भाव मन में मत लाओ। वह तो वास्तव में मुनि गजसुकुमाल के मुक्ति प्राप्त करने के अभियान में सहयोगी हुआ है, जैसे तुम नगरी से बाहर निकलते हुए उस वृद्ध के सहयोगी हुए, जो अत्यन्त जर्जर था, दुर्बल था, बाहर पड़े ईंटों के बहुत बड़े ढेर में से एक-एक ईंट उठाकर अपने घर में डाल रहा था। तुम दयार्द्र होकर स्वयं अपने हाथी से नीचे उतरे, ईंटें पहुँचाने में वृद्ध की सहायता करने लगे। तुम्हारे देखादेख सभी उस कार्य में लग गये। थोड़ी-सी देर में ईंटें वृद्ध के घर के भीतर पहुंच गईं।" भय से सीमिल की मृत्यु
भगवान की वाणी सुनकर कृष्ण का क्रोध शान्त हो गया, फिर भी उनकी यह भावना रही कि उस पुरुष को देखू तो सही। इसलिए उन्होंने भगवान् से निवेदन किया"भगवन् ! मैं उस पुरुष को देखना चाहता हूँ।" भगवान् ने कहा--"जब तुम यहाँ से वापस जाओगे, नगर में प्रवेश करोगे, तब तुम्हें वह मनुष्य मिलेगा, किन्तु, तुम्हें देखते ही उसका प्राणान्त हो जायेगा।"
उधर ब्राह्मण सोमिल ने यह सुना कि वासुदेव कृष्ण भगवान् अरिष्टनेमि की सेवा में गये हैं तो उसने सोचा-मेरा पाप-कार्य अब छिपा नहीं रहेगा । अपने प्राण बचाने के लिए वह वन की आरे चल पड़ा। उसी समय श्रीकृष्ण नगर में प्रविष्ट हुए । वह अत्यन्त भयभीत हो गया। उनके हाथी के आगे गिर पड़ा। तत्क्षण मर गया।
वासुदेव कृष्ण ने यह जान लिया कि यह वही नीच पुरुष है, जिसने मुनि गजसुकुमाल को कष्ट दिया। उन्होंने उसके मृत शरीर को जंगल में फिकवा दिया। अनेक यदुवंशीय पुरुषों एवं महिलाओं द्वारा प्रव्रज्या
असमय में ही गज सुकुमाल के चले जाने से यादवगण बड़े व्यथित हुए। उनमें से
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