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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग–वासुदेव कृष्ण : घट जातक देखकर मुझे अत्यधिक हर्ष हुआ। चलो, व्यायामशाला में चलें, बाहुबल' आजमाएँ । उससे मुझ और प्रसन्नता होगी।"
अरिष्टनेमि ने कृष्ण की चुनौती सुनी। वे विचारने लगे-ध्यायामशाला में जाना उचित नहीं होगा। क्योकि मैं वहाँ यदि अपना बल-प्रदर्शन करूंगा तो न जाने इनकी क्या स्थिति होगी? वैसा करना बड़े भाई के प्रति मेरा अविनय होगा। इसलिए मुझे ऐसा करना चाहिए, जिससे इनकी भी मनोवाञ्छा पूर्ण हो जाए, इन्हें कोई कष्ट भी न हो और मेरे द्वारा इनके प्रति कोई अविनयाचरण भी न हो। यह सोचते हुए उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा"तात ! आप मेरी शक्ति देखना चाहते हैं ? इनके लिए व्यायामशाला में जाना आवश्यक नहीं है।"
श्रीकृष्ण बोले- "तो फिर कैसे हो?"
अरिष्टनेमि-आप अपनी बाहु विस्तीर्ण कीजिए-फैलाइए। मैं उसे झुकाकर अपने बल का परिचय दूंगा।"
श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का यह सुझाव सुन्दर लगा। उन्होंने अपनी दाहिनी भुजा फैला दी। उसे पूरे बल के साथ तान दिया। अरिष्टनेमि ने सुकोमल कमल-नाल की ज्यों उसे झुका दिया।"
तब श्रीकृष्ण ने अरिष्टनेमि को अपनी भुजा फैलाने के लिए कहा।
अरिष्टनेमि परिणाम जानते थे; अतः वे वैसा करने को सहसा तैयार नहीं हुए, आनाकानी करते रहे, पर, जब श्रीकृष्ण ने बहुत आग्रह किया, तब उन्होंने अपनी बाईं भुजा फैला दी। श्रीकृष्ण ने अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे झुकाने का प्रयास किया, पर, वे उसे हिला तक नहीं सके । वे भुजा को पकड़कर मर्कट की ज्यों लटक गये, पर, भुजा टस से मस नहीं हुई । वह सर्वथा स्थिर एवं अविचल रही। तथंकर-बल की कोई सीमा नहीं होती।
श्रीकृष्ण ने यह अनुभव किया कि असिष्टनेमि की शक्ति अपार है। उन्होंने भुजा छोड़ दी और वे बड़े स्नेह के साथ उनसे कहने लगे- "अनुज ! जिस प्रकार अग्रज बलराम मेरी शक्ति के बल पर समग्र जगत् को तृण-सदृश समझते हैं, उसी तरह तुम्हारी शक्ति देखकर आज मेरा भी मानस उल्लिसित एवं गर्वान्वित है।" कृष्ण की आशंका
श्रीकृष्ण को छोटे भाई की शक्ति पर एक ओर अत्यन्त हर्ष था, पर, साथ-ही-साथ उनके मन में एक आशंका भी उत्पन्न हई-अरिष्टनेमि ऐसे अपरमित बल का धनी है, कहीं यह मेरा राज्य अधिकृत न कर ले। कृष्ण के मन में चिन्ता व्याप्त हो गई। अरिष्टने मि वहाँ से चले गये।
इतने में बलराम श्रीकृष्ण के पास आये। कृष्ण को चिन्तित देखा । उन्होंने उनसे चिन्ता का कारण पूछा।
श्रीकृष्ण ने कहा-"हमारा छोटा भाई अरिष्टनेमि महान् शक्तिशाली है । मैं पूरी ताकत लगाकर भी उसफी भुजा को झुका नहीं सका। उसने मेरी भुजा बड़ी आसानी से झुका दी।" बलराम- "हमारा भाई इतना बड़ा शक्तिशाली है, यह तो हमारे लिए बड़े हर्ष की बात है।"
श्रीकृष्ण -"हर्ष की बात तो है, पर, साथ-ही-साथ चिन्ता की बात भी तो है। यदि उसने चाहा और राजसिंहासन छीन लिया तो?
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