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५३२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ डाला । देवताओं ने आकाश से फूलों की वर्षा की, जयनाद किया, नवम वासुदेव के अभ्युदय पर हर्ष मनाया।
इस युद्ध में अपरिमित बलशाली, अनुपम योद्धा अरिष्टनेमि का बड़ा महत्त्वपूर्ण भाग था। उन्होंने अनेक विरोधी राजाओं के छक्के छुड़ा दिये, उन्हें पद-दलित कर डाला। पराजित राजा उनके पास आये और उनसे क्षमा-याचना करने लगे।
अरिष्टनेमि उन सबको लेकर श्रीकृष्ण के पास आये। कृष्ण भाई से सस्नेह मिले । सभी राजाओं को अभय-दान दिया। अरिष्टनेमि के परामर्श और समुद्रविजय के आदेश के अनुरूप उन्होंने जरासन्ध के अवशिष्ट पुत्रों का स्वागत-सत्कार किया। जरासन्ध के पुत्र सहदेव को मगध का चतुर्थांश राज्य दिया। सहदेव आदि ने अपने पिता की अन्त्येष्टि की। जीवयशा अपने पिता के मारे जाने पर अग्नि में प्रवेश कर गई।
श्रीकृष्ण ने भरत क्षेत्र के तीन खण्ड विजय किये। इसमें उन्हें छः मास लगे। अर्धचक्रवर्ती के रूप में उनका बड़े हर्षोल्लास के साथ राज्याभिषेक हुआ। वे अमित समृद्धि तथा गरिमा मंडित थे।
सभी यादव राजा एवं राजकुमार बड़े सुख तथा आनन्दपूर्वक रहने लगे। __ एक दिन का प्रसंग है, पांचजन्य शंख के गंभीर घोष से सारी द्वारिका प्रतिध्वनित हो उठी। श्रीकृष्ण, बलराम आदि सभी आश्चर्यान्वित हो गये। सहसा श्रीकृष्णके मन में शंका उदित हुई-क्या दूसरा चक्रवर्ती आविर्भूत हो गया है अथवा इन्द्र स्वयं द्वारिका में आ गया है ! पांचजन्य शंख कैसे बजा? अरिष्टनेमि का अपरिमित पराक्रम
इसी बीच अस्त्रागार का अधिकारी श्रीकृष्ण की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने का_स्वामिन ! आपके छोटे भाई अरिष्टनेमि अस्त्रशाला में आये। उन्होंने सुदर्शन चक्र को कुम्हार के चाक की ज्यों आसानी से घुमादिया शार्ग धनुष को कमलनाल के सदश उठाकर मोड़ दिया, कौमुदी गदा को एक मामूली छड़ी की तरह घुमा डाला तथा पांचजन्य शंख को इतने जोर से बजाया कि समग्र द्वारिका भय-भ्रान्त हो उठी।" ।
श्रीकृष्ण ने यह सब सुना, अस्चागार के अधिकारी को विदा किया। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि इन दिव्य अस्त्रों को वासुदेव के अतिरिक्त अन्य कोई भी प्रयुक्त कर सकता है। वे ऊहापोह करने लगे-इतना शक्तिशाली कोई अन्य कैसे होगा ? अरिष्टने मि ने यह सब किया है, क्या वह मुझसे भी अधिक प्रबल है ? कृष्ण और अरिष्टनेमि में शक्ति-परीक्षण
इतने में अरिष्टनेमि वहाँ आ उपस्थित हुए। श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा-'अरिष्टनेमि ! क्या शंख-ध्वनि तुमने की?"
अरिष्टनेमि-"हाँ, तात ! मैंने ही की।" श्रीकृष्ण-अन्याय दिव्यास्त्रों को भी उठाया ?" अरिष्टनेमि ने स्वीकृति में अपना मस्तक हिला दिया।
यह सुनकर श्रीकृष्ण अत्यन्त अचंभित हो उठे। वे बोले-'अनुज ! इन दिव्य अस्त्रों को प्रयुक्त करने का बल मेरे अतिरिक्त और किसी में नहीं है। तुम्हारा यह विपुल बल
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