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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५३१ उनको यह उम्मीद थी कि मगध की राजधानी राजगह में उनको अधिक कीमत प्राप्त होगी; अतः वे राजगृह पहुँचे। उन्होंने अपने रत्नकम्बल मगधराज जरासन्ध की पुत्री जीवयशा को दिखलाये। जीवयशा ने उनकी आधी ही कीमत कुंती। व्यापारियों ने अपने मुंह मचकोड़ते हुए (बनाते हुए) कहा- "इससे दुगुनी कीमत तो हमें द्वारिका में ही मिल रही थी।" जीवयशा ने पूछा-“वह द्वारिका कहाँ है ?" व्यापारी बोले- “पश्चिम समुद्र के तट पर वह एक अत्यन्त समृद्धिशालिनी, वैभवशालिनी नगरी है । वह वह स्वर्ग-स्थित अलकापुरी के समान सुन्दर है।" जीवयशा - "वहाँ किसका राज्य है ?" व्यापारी-“यादव कुल' शिरोमणि वसुदेव-पुत्र श्रीकृष्ण वहाँ राज्य करते हैं।" कृष्ण का नाम सुनते ही जीवयशा चौंकी। रोती-बिलखती अपने पिता के पास गई। पिता ने रुदन का कारण पूछा तो जीवयशा बोली-'मेरे पति की हत्या करने वाला कृष्ण अब तक जिन्दा है। वह द्वारिका में राज्य कर रहा है। तात ! मुझे आदेश दें, मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊं, अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लूं।" कृष्ण और जरासन्ध का युद्ध : जरासन्ध का वध जरासन्ध यह जानकर कि कृष्ण जिन्दा है, बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने अपनी बेटी को ढाढ़स बंधाते हुए कहा-"पुत्री ! रोओ नहीं। मैं कृष्ण का वध कर डालूंगा, सारे यादवों को समाप्त कर दूंगा। उनकी जड़ तक नहीं रहने दूंगा। यादव-स्त्रियाँ रो-रोकर आंसुओं से नहा उठेगी। मैं ऐसी स्थिति बना दूंगा।" पुत्री को आश्वस्त कर जरासन्ध ने युद्ध की बहुत बड़ी तैयारी की। अपने अनेक पराक्रमी मित्र राजाओं, अधीनस्थ राजाओं को सेना-सहित आमन्त्रित किया। वे आये। सब सेनाओं को मिलाकर एक अत्यन्त विशाल चतुरंगिणी सेना के रूप में सुसज्जित किया। उसे साथ लिये जरासन्ध ने द्वारिका की दिशा में प्रस्थान किया। उधर यादवों को अपने गुप्तचरों द्वारा सूचना प्राप्त हो गई। वे भी युद्धार्थ सन्नद्ध हुए । कृष्ण, बलराम, अरिष्टनेमि आदि योद्धाओं के नेतृत्व में वे युद्ध के मैदान में आ डटे । जरासन्ध की सेना ज्योंही वहाँ पहुँची, यादव सेना उससे भिड़ गई । भयानक संग्राम हुआ । दोनों ओर के अनेकानेक योद्धा खेत रहे। कृष्ण और जरासन्ध आमने-सामने हुए। जरासन्ध ने कहा-"कृष्ण ! तुम बड़े कपटी हो। अब तक तुम छल-बल द्वारा ही जीवित रहे । तुमने छल से कंस को मारा। कालकुमार भी इसी प्रकार काल-कवलित हुआ। अब तुम सम्भल जाओ। मौत तुम्हारे सामने खड़ी श्रीकृष्ण मुसकराये और बोले-"फिजूल क्यों बातें बनाते हो। आओ, अपनी शक्ति का प्रदर्शन करो।" ____ जरासन्ध और कृष्ण के मध्य हुए धनुर्युद्ध, खड्ग-युद्ध, गदा-युद्ध आदि सभी में श्रीकृष्ण विजयी हुए, जरासन्ध पराजित । अन्त में जरासन्ध ने अपने अमोघ-निष्फल नहीं होनेवाले अस्त्र चक्र का वार किया। चक्र कृष्ण के पास पहुँचा । उनकी तीन परिक्रमाएँ की और उनके हाथ में स्थित हो गया। कृष्ण ने जरासन्ध को फिर ललकारा, सावधान किया। जरासन्ध अड़ा रहा, युद्धोद्यत रहा, तब वासुदेव कृष्ण ने चक्र द्वारा उसका मस्तक काट Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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