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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग --- वासुदेव कृष्ण : घट जातक
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सुन्दर प्रासाद थे । उन सबके मध्य में बलराम के लिए पृथिवी - विजय नामक तथा वासुदेव कृष्ण के लिए सर्वतोभद्र नामक प्रासाद था । सम्पूर्ण नगरी स्थान-स्थान पर तोरणों, पताकाओं आदि से सुसज्ज थी 1 उसमें यत्र-तत्र चबूतरे, कूएँ, बावड़ियाँ, तालाब, बगीचे और बड़ीबड़ी सड़कें थीं। वह देवराज इन्द्र की राजधानी अलकापुरी के सदृश सुहावनी थी ।
कृष्ण का राज्याभिषेक
नगर की रचना के अनन्तर कुबेर ने श्रीकृष्ण को दो पीताम्बर, हार, मुकुट, कौस्तुभ मणि, शार्ङ्ग धनुष, अक्षय, बाण-संभृत तूणीर, नन्दक खड्ग, कौमुदी गदा और गरुड़ध्वज रथ उपहृत किया। उसने बलराम को वनमाला, मूसल, दो नील वस्त्र, तालध्वज रथ, अक्षय बाणयुक्त तूणीर, धनुष तथा हल भेंट किया। सभी दशाहों को रत्नमय अलंकरण आदि दिये। पश्चिम समुद्र तट पर श्रीकृष्ण का राज्याभिषेक हुआ ।
राज्याभिषेक के पश्चात् द्वारिका में समारोह प्रवेश की तैयारी की गई । श्रीकृष्ण अपने दारुक नामक सारथि के साथ तथा बलराम अपने सिद्धार्थ नामक सारथि के साथ रथारुढ़ हुए। वे चारों ओर यादव राजाओं तथा राजकुमारों से घिरे हुए ऐसे प्रतीत होते थे, मानो नक्षत्रगण से संपरिवृत्त सूर्य और चन्द्र हों । सबने द्वारिका में प्रवेश किया, मानवाच्छन्न मेदिनी जय - नाद से गूंज उठी ।
कुबेर ने श्रीकृष्ण के आदेशानुसार दशों दशाह तथा विशिष्ट जनों के लिए निर्मित प्रासाद उन्हें बतला दिये । वे अपने-अपने प्रासादों में प्रविष्ट हुए ।
कुबेर ने साढ़े तीन दिन पर्यन्त द्वारिका में स्वर्ण, रत्न, बहुमूल्य विविध वस्त्र तथा धान्य की वर्षा की । द्वारिका समृद्धि, वैभव, धन, धान्य आदि से आपूर्ण हो गई । वासुदेव कृष्ण द्वारिका पर शासन करने लगे। उनके अत्यन्त सुखी और सम्पन्न ।
न्यायपूर्ण सुशासन में प्रजाजन
कृष्ण-रुक्मिणी विवाह : प्रद्युम्न का जन्म
कुछ समय बाद वासुदेव कृष्ण का कुंडिनपुर के राजा भीष्मक तथा रानी यशोमती अंगजा, अप्रतिम सुन्दरी राजकुमारी रुक्मिणी के साथ वैवाहिक प्रसंग बना । रुक्मिणी का भाई, कुंडिनपुर का युवराज रुक्मि अपनी बहिन का विवाह राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता था। नारद द्वारा कराये गये परिचय के कारण कृष्ण तथा रुक्मिणीएक दूसरे की ओर आकृष्ट थे । पूर्व संकेतानुसार रुक्मिणी नागपूजा के लिए नगर से बाहर उद्यान में आई थी। श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम सहित संकेतित स्थान पर पहले ही आ गये थे । श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को अपने रथ में बिठा लिया और रथ को द्वारिका की दिशा में हाँक दिया ।
ज्योंही यह ज्ञात हुआ, शिशुपाल और रुक्मि आदि ने अपनी सेनाओं सहित उनका पीछा किया, उन्हें रोकने का भरसक प्रयास किया, किन्तु, वे सफल नहीं हो सके । श्रीकृष्ण fort को लिये द्वारिका की ओर बढ़ते गये । बलराम ने अकेले ही उन सबको पराजित कर दिया ।
श्रीकृष्ण, बलराम द्वारिका पहुँच गये । रुक्मिणी का श्रीकृष्ण के साथ सानन्द पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ ।
वासुदेव श्रीकृष्ण ने और भी अनेकानेक सुन्दर राजकुमारियों के साथ विवाह
किये ।
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