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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५२५ वह देवकी को उसी समय मार डालता। कार्य को नष्ट करने के लिए उसके कारण को नष्ट कर देना चाहिए। कंस ने यह नहीं सोचा, अन्यथा हमें आज यह दुदिन देखने को नहीं मिलता।"
जीवयशा-"पिताजी ! उन्होंने पूरी सावधानी बरती । ज्यों-ज्यों देवकी के बच्चे होते गये, वे उन्हें मौत के घाट उतारते गये।"
जरासन्ध- ''छ: तक तो यह क्रम चला, पर, सातवां तो बच गया ।"
जीवयशा-... "यह वसुदेव और देवकी का विश्वासघात था। उन्होंने मेरे पति के साथ धोखा किया।
जरासन्ध- 'पुत्री ! शोक मत करो। मैं इसका बदला लूंगा। कंस के हत्यारों को उनके समस्त पारिवारिक जनों के साथ विनष्ट कर दूंगा । उनकी स्त्रियाँ फूट-फूट कर रोयेंगी।"
जीवयशा-'तात ! मैं यही चाहती हूँ। तभी मुझे शान्ति मिलेगी।" जरासन्ध-"पुत्री ! तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण होगी, मैं आश्वासन देता हूँ।"
जरासन्ध ने यह कहकर जीवयशा को महल में भेज दिया। जरासन्ध के आदेश से सोमक का मथुरा-गमन
तत्पश्चात् जरासन्ध ने अपने अधीनस्थ सोमक नामक राजा को बुलाया। उसे सारा घटनाक्रम बतलाकर कहा ... 'सोमक ! राजा समुद्रविजय के यहाँ जाओ और कृष्ण तथा बलराम को अपने साथ लेकर यहाँ आओ।"
अपने स्वामी की आज्ञानुसार सोमक मथुरा गया। समुद्र विजय से बोला"राजन् ! मैं जरासन्ध का सन्देशवाहक हूँ।" समुद्र विजय-"महाराज का क्या सन्देश है !" सोमक- 'कृष्ण तथा बलराम को मुझे सौंप दीजिए।"
समुद्रविजय-"आप उन्हें क्यों चाहते हैं ? उनका क्या करेंगे ?"
सोमक- वे हमारे अधिपति जरासन्ध के जामाता-उनकी पुत्री जीवयशा के पति कंस के हत्यारे हैं। उन्हें दण्डित किया जायेगा।"
यह सुनते ही सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सभासद् भय से कांप उठे। वे जरासन्ध के कर स्वभाव से सुपरिचित थे। फिर समुद्रविजय ने दृढतापूर्ण शब्दों में उससे कहा—“सोमक ! कृष्ण और बलगम का कोई अपराध नहीं है। कंस ने कृष्ण और बलराम के नवजात भाइयों का वध किया। अपने भाइयों के हत्यारे को मारकर उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है । वे निरपराध हैं । दण्ड सापराध को दिया जाता है।"
सोमक-'राजन् ! ऐसा मत कहिए। निश्चय ही कृष्ण और बलराम अपराधी हैं। साथ-ही-साथ वसुदेव भी अपराधी है । वह कंस के प्रति वचनबद्ध था कि वह (वसुदेव) अपने सात नव जात शिशु उसे सौंपेगा, पर, उसने सातवें शिशु को छिपा लिया, उसे अन्यत्र पहुँचा दिया।" कृष्ण : कोपाविष्ट
कृष्ण अब तक शान्त था। जब सोमक ने उसके पिता वसुदेव के माथे दोष मढ़ा तो तो उसकी त्योरियाँ चढ़ गईं। वह क्रुद्ध हो उठा । कुछ बोलना चाहता था कि इतने में समुद्रविजय ने दृढ़ता के साथ कहा--."निश्चय ही कंस हत्यारा था। वह निर्दय, क्रूर और निष्ठूर
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