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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग - वासुदेव कृष्ण : घट जातक
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कृष्ण ने अपनी बाहुओं में कसकर उसे इतने जोर से दबाया कि उसकी हड्डियां चूर-चूर हो गईं। फिर जोर से पकड़ कर उसका सिर नीचे झुका दिया और उसपर वज्र सदृश मुक्के का प्रहार किया कि उसके मुंह से खून बहने लगा। वह जमीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों की पुतलियाँ प्रथम गई । उसका प्राणान हो गया ।
कृष्ण द्वारा कंस का प्राणान्त
कंस ने जब देखा कि उसका मल्ल चाणूर कृष्ण के हाथों मारा गया तो वह बड़ा क्रुद्ध हुआ । उसने अपने सैनिकों को, अनुचरों को आदेश दिया कि इन दोनों ग्वालों के लड़कों को मार डालो | साथ ही साथ इनके परिपालक नन्द को भी मौत के घाट उतार दो ।
कृष्ण अत्यन्त क्रोधित होकर अखाड़े से उछला। वह कंस के नजदीक पहुँच गया । उसने उसके बाल पकड़ लिये । उसे सिंहासन से नीचे घसीट लिया और जमीन पर पटक कर कहा—“अरे पापिष्ठ ! तूने अपने प्राण बचाने के लिए वृथा गर्भ - हत्याएँ कीं । अब अपने दुष्कर्मों का फल भोग, भरने को तैयार हो जा ।"
बलराम द्वारा मुष्टिक का हनन
कंस हाथी की ज्यों पृथ्वी पर पड़ा था । कृष्ण सिंह के समाना उसके पास खड़ा था । दर्शक यह दृश्य देखकर विस्मय-विमुग्ध थे । इस बीच बलराम ने पहलवान मुष्टिक को अपनी दोनों बाहुओं में जकड़कर इतने जोर से दबाया कि उसका सांस निकल गया, वह प्राणहीन हो गया ।
अपने राजा कंस को यों संकट में पड़ा देखकर उसके सैनिक, अनुचर उसकी सहायता करने हेतु दौड़े । बलराम ने मण्डप का एक खंभा उखाड़ लिया । उनके सामने खड़ा हो गया । एक को भी आगे नहीं बढ़ने दिया । खंभे की मार खाकर कंस के शस्त्रास्त्र सज्जित सैनिक मक्खियों की ज्यों वहाँ से भाग खड़े हुए।
कृष्ण ने कंस के सिर पर पाद प्रहार कर उसका प्राणान्त कर दिया और उसके बाल पकड़ कर दूध में से मक्खी को ज्यों उसे सभा मण्डप से बाहर फेंक दिया ।
मथुरा-नरेश कंस ने पहले से ही अपने ससुर जरासन्ध के यहाँ से सैनिक बुला रखे थे । कांस के मारे जाने से वे बहुत क्रोधित हुए तथा कृष्ण एवं बलराम पर आक्रमण करने हेतु अग्रसर हुए ।
एक ओर दो निःशस्त्र भाई थे, दूसरी ओर शस्त्रास्त्र सज्जित सहस्रों सैनिक थे, जो उन दोनों पर टूट पड़े । समुद्रविजय आदि दशार्ह राजा इस अन्यायपूर्ण उपक्रम को सह नहीं सके । वे जरासन्ध के सैनिकों का मुकाबला करने आगे आये । यह देखकर जरासन्ध के सैनिक भाग छूटे।
भीषण युद्धमय वातावरण के दर्शक भयाक्रान्त हो गये । वे वहाँ मे उठकर अपनेअपने स्थानों को चले गये । सभा मण्डप नि:शब्द, प्रशान्त हो गया । उस समय वसुदेव ने अपने पुत्र अनावृष्टि को आज्ञापित किया कि कृष्ण तथा बलराम को अपने घर ले चलो। पुत्र- वात्सल्य
समुद्रविजय आदि दशार्ह भी वसुदेव के घर पहुँचे । वसुदेव ने अपने अर्धासन पर बलराम को समासीन किया तथा कृष्ण को अपनी गोद में बिठाया । वात्सल्यवश वसुदेव के नेत्र अश्रुपूर्ण हो गये
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