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________________ ५२२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ इच्छा से अखाड़े में उतर आते हैं, उनमें कुश्ती होना अनिवार्य है । यदि यह बालक भीत या उद्वेजित हो तो मुझसे अभ्यर्थना करे, मैं इसे मुक्त करा दूंगा, अन्यथा यह गल्ल युद्ध होगा ही ।" कंस ने जो कहा, उसे सुन दर्शक चुप हो गये। इतने में कृष्ण ने दर्शकों को सुनाते हुए ऊँची आवाज में कहा - "यह पहलवान चाणूर राजपिण्ड खा खा कर हाथी के सदृश मोटा-ताजा और मदोन्मत्त हो गया है । मैं गोदुग्धपायी, गोकुलवासी बालक हूँ। जिस प्रकार सिंह का बच्चा मदोद्धत हाथी को मार गिराता है, उसी प्रकार मैं इस चाणूर को धराशायी कर दूंगा । चिन्ता न करें, देखते जाइए।" ज्यों ही कंस के कानों में 'गोकुल निवासी बालक' ये शब्द पड़े, वह आशंका से सिहर उठा । उसने तत्क्षण अपने दूसरे पहलवान मुष्टिक को आज्ञापित किया, वह भी अखाड़े में उतर जाए । राजा की आज्ञा पाकर मुष्टिक भी अखाड़े में उतर पड़ा । अब स्थिति यह थी - एक ओर एकाकी बालक कृष्ण था, दूसरी ओर दो विशालकाय, भारी-भरकम पहलवान थे । यह सर्वथा अधर्मपूर्ण मुकाबला था । बलराम इस स्थिति को सह नहीं सका। वह अपने आसन से उछला । सीधा अखाड़े में पहलवान मुष्टिक के समक्ष जा खड़ा हुआ । मुष्टिक स्तब्ध रह गया । चाणूर और कृष्ण भिड़ गये। मुष्टिक कृष्ण पर टूट पड़ना चाहता था, पर, बलराम ने उसे आगे बढ़ने से रोक दिया । एक ओर कृष्ण तथा चाणूर का मल्ल युद्ध चल रहा था, दूसरी ओर बलराम एवं मुष्टिक का । दोनों ओर से अत्यधिक बल, दाँव-पेच आजमाए जा रहे थे। बड़ा जबर्दस्त मुकाबला था । जय-पराजय अनिश्चित लगती थी । इतने में कृष्ण ने एकाएक चाणूर को तथा बलराम ने मुष्टिक को कड़बी के पूलों की तरह दूर फेंक दिया । यदि सामान्य व्यक्ति होते तो उनकी हड्डियाँ चूर-चूर हो जाती, पर वे तो विश्व - विश्रुत मल्ल थे । व्यायाम, अभ्यास, उत्तमोत्तम पौष्टिक खाद्य से उनके अस्थि-बन्ध सुदृढ़ थे, देह मांसोपचित थी । गिरते ही वे गेंद की ज्यों उछलते हुए उठे और खड़े हो गये । चाणूर और मुष्टिक क्रोध से पुकारने लगे । चाणूर ने कृष्ण को अपने हाथों पर उठा लिया और चाहा कि वह उसे दूर फेंक दे, पर, इतने में कृष्ण ने चाणूर की छाती पर एक जबर्दस्त मुक्का मारा । प्रहार वज्रोपम था । इस पर चाणूर क्रोध से विकराल हो गया । उसने मल्ल-युद्ध की मर्यादा, नियम- परम्परा के प्रतिकूल कृष्ण के उर-स्थल —-वक्षस्थल के अघस्तन भाग -- पेट पर बड़े जोर से मुक्का मारा। कोमल अंग पर चोट लगने से कृष्ण के नेत्रों के आगे अंधेरा छा गया । चाणूर भी काफी परिश्रान्त था । वह कृष्ण को अपने हाथों पर सम्हाल नहीं सका । कृष्ण पृथ्वी पर गिर गया, कुछ क्षणों के लिए निश्चेष्ट हो गया । कंस ने कृष्ण को समाप्त करने का इसे उपयुक्त अवसर देखा । उसने चाणूर को इशारा किया कि वह फौरन उसका प्रणान्त कर डाले । कंस का अभिप्राय हृदयंगम कर चाणूर कृष्ण की ओर लपका । बलराम ने तत्क्षण उसकी दुश्चेष्टा को भांप लिया । विद्युद्वेग से वह आगे बढ़ा। उसने ऐसा प्रबल प्रहार किया कि चाणूर उसे झेल नहीं सका । उसकी मार से उसे सात धनुष पीछे हट जाना पड़ा । इस बीच कृष्ण को होश आ गया । उसने चाणूर को ललकारा। चाणूर आ भिड़ा । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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