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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
कथानुयोग – वासुदेव कृष्ण : घट जातक
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पर बैठे थे । बलगम ने कृष्ण को संकेत द्वारा उनका परिचय कराया । मण्डप में एक ओर समुद्रविजय आदि दशाहं राजा मञ्चासीन थे। बलराम ने कृष्ण को उन्हें इंगित द्वारा
बताया ।
बलगम और कृष्ण, वहाँ जो खाली आसन पड़े थे, उन पर बैठ गये । बैठते ही सबकी दृष्टि कृष्ण की ओर गई । कृष्ण के गरिमामय, ऊर्जस्वल व्यक्तित्व ने सहज ही सबको अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। सबके मन जिज्ञासोत्सुक हो उठे कि देव सदृश यह कौन पुरुष है ? मथुराधिपति कंश ने आज्ञा दी - " मल्ल युद्ध शुरू किया जाए ।'
अनेक मल्ल अखाड़े में उतर आये और क्रमशः कुश्ती करने लगे । उन द्वारा प्रयुक्त कुश्ती के अनूठे अनूठे दाँव-पेच देखकर दर्शकवृन्द अत्यधिक प्रसन्नता का अनुभव करते थे । कभी एक मल्ल दूसरे को पटककर उसके ऊपर दिखाई देता तो दूसरे ही क्षण वह नीचे दीखता । इसमें अनेक मल्ल विजयी हुए और अनेक पराजित हुए । विजेता मल्लों की दर्शकों ने प्रशंसा की, पराजित भर्त्सना पाते ही हैं । यह क्रम समाप्त हुआ । प्रतियोगिता में सम्मिलित मल्ल वहाँ से चले गये । अखाड़ा खाली हो गया । तब राजा कंस ने अपने परमशक्तिशाली, महाकाय मल्ल चाणूर को कुश्ती के लिए प्रेरित किया । वह अखाड़े में उतरा और ताल ठोंक कर चुनौती देने लगा - "म् "मुझसे कुश्ती लड़ने के लिए कोई पुरुष, जो अपने को समर्थ तथा सशक्त मानता हो, अखाड़े में आए।"
कृष्ण द्वारा चाणूर का वध
चाणूर की देह पर्वत की ज्यों विशाल थी । उसे देखते ही मन भय से काँप उठता था। उसकी चुनौती को सुनकर समग्र मण्डप में निःस्तब्धता छा गई। किसी की यह हिम्मत नहीं हुई कि उसकी चुनौती को स्वीकार करे । चाणूर दूसरी बार फिर गरजा "है कोई उपस्थित परिषद् में ऐसा वीर, जो मेरी चुनौती झेल सके ।" किसी ओर से कोई उत्तर नहीं आया । सब चुपचाप बैठे रहे ।
चाणूर दर्पोद्धत हो गया । उसने अहंकारपूर्ण शब्दों में कहा- "मैं तो समझता था, इस परिषद् में कोई पराक्रमी, वीर पुरुष होगा ही, पर, यहाँ तो मुझे सभी भीरु और दुर्बल प्रतीत होते हैं ।"
कृष्ण चाणूर की दर्पोक्ति नहीं सह सका। वह सिंह की ज्यों अखाड़े में कूदा और ताल ठोंककर चाणूर के सामने खड़ा हो गया ।
दर्शकवृन्द की ओर से आवाज आई- - "मल्ल चाणूर अवस्था और शक्ति - दोनों में बहुत बढ़ा चढ़ा है । यह पेशावर पहलवान है । बहुत क्रूर और कठोर है । इसके साथ एक सुकुमार बालक का मुकाबला उचित नहीं है यह नहीं होना चाहिए ।" कंस क्रोधाविष्ट हो गया । वह बोला चुनौती झेलकर अखाड़े में क्यों कूदा ? "
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" यदि यह सुकुमार बालक है, तो चाणूर की
दर्शकवृन्द तिलमिला उठे । उनकी ओर से फिर आवाज आई- ---"यह एक ऐसा मल्ल युद्ध है, जिसमें किसी भी प्रकार से समानता नहीं है । समानतायुक्त प्रतिद्वन्द्वियों में ही प्रतिद्वन्द्विता, मल्लयुद्ध होना संगत होता है ।"
कंस सबको शान्त करने लगा और बोला - " दर्शकवृन्द ! मैं मानता हूँ, आप लोगों का कहना सही है, किन्तु, मल्लयुद्ध का – कुश्ती का यह नियम है, जो प्रतिद्वन्द्वी मल्ल अपनी
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