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________________ ५२० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ भाइयों के कंस द्वारा मारे जाने की घटना बतलाई। यह सब सुनकर कृष्ण के मन में कंस के प्रति बड़ा क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने उसका वध करने की प्रतिज्ञा की। कृष्ण ने बलराम से यह भी कहा—'यशोदा ने मां की ज्यों स्नेह के साथ मेरा लालन-पालन किया है। मेरे मन में उसके प्रति वही आदर है। जो एक पुत्र के मन में माता के प्रति होता है । आप भविष्य में उसे कभी दासी न कहें।" बलराम कृष्ण के विनत तथा शालीन भाव से प्रभावित हुआ और भविष्य में कभी वैसा न करना स्वीकार किया। कालिय-दमन ___ दोनों भाई स्नान हेतु यमुना में प्रविष्ट हुए। वहाँ कालिय नामक एक अत्यन्त जहरीला नाग रहता था। वह कृष्ण को डसने के लिए दौडा। उस नाग के फण में मणि थी। उससे ज्योति निकल रही थी। बलराम ने जब जल के भीतर ज्योति देखी तो उसे सभ्रम हुआ। तब तक कालिय नाग अत्यन्त त्वरित गति से चलता हुआ कृष्ण के पार पहुँच गया था। वह डसने का उपक्रम करे, उससे पूर्व ही कृष्ण ने कमलनाल के सदृश उसे पकड़ लिया तथा क्रीड़ा-ही-क्रीड़ा में उसे समाप्त कर दिया। जब नाग निष्प्राण हो गया तो कृष्ण यमुना से बाहर निकल आया। यमुना के तट पर गोपों और गोपियो की भारी भीड़ थी। कालिय नाग से सभी सदा भयभीत रहते थे। कृष्ण द्वारा उसका वध कर दिये जाने पर सबको बड़ा परितोष हुआ, सब जयनाद करने लगे। कृष्ण-बलराम द्वारा हाथियों का वध वहाँ से दोनों भाई मथुरा की ओर रवाना हुए। कंस की तो पहले से ही कुटिल योजना थी, उसने मथुरा के दरवाजे पर पद्मोत्तर तथा चम्पक नामक दो मदोन्मत्त हाथी छोड़ रखे थे, ताकि बलराम और कृष्ण के वहाँ आते ही वे उन्हें रौंद डालें, कुचल डालें, उनके प्राण हर लें। ज्यों ही दोनों भाई दरवाजे के निकट हावतों ने हाथियों को उन पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। दोनों मत्त गजराज चिंघाड़ते हुए उनकी ओर दौड़े। वे यमराज जैसे प्रतीत होते थे । कृष्ण ने जब उन्हें देखा तो बलराम से कहा--"तात ! कंस की राजधानी के दरवाजे पर यमराज हमारा स्वागत करने आ रहे हैं।" बलराम ने मुसकराते हुए कहा---'हम भी तत्पर हैं। अभी उनको यमपुरी पहुँचा देंगे।" ___ दोनों हाथी बहुत निकट आ गये। पद्मोत्तर नामक हाथी कृष्ण पर तथा चम्पक नामक हाथी बलराम पर आक्रमण करने को उतारू हुआ। कृष्ण अपने स्थान से उछला और उसने पद्मोत्तर के दाँत बड़ी मजबूती से पकड़ लिये और उन्हें खींच कर उखाड़ डाला। उस पर एक मुष्टिका का प्रहार किया। वह निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़ा । उसी की ज्यों बलराम ने भी चम्पक के प्राण ले लिये। दोनों की अगाध शक्ति को देखकर नागरिक विस्मित हो गए। लोग परस्पर चर्चा करने लगे-"अरिष्ट वृषभ, केशी अश्व आदि का संहार करने वाले ये ही नन्द के पुत्र हैं।" दोनों भाई मण्डप में पहुँचे। उसके मध्य मल्ल-युद्ध के लिए अखाड़ा बना था, जिसके चारों ओर दर्शकों के बैठने हेतु आसन लगे थे। अनेक राजा मण्डप में अपने-अपने आसनों Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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