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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग -- वासुदेव कृष्ण : घट जातक ५१६ हुआ तथा कृष्ण को साथ लिए गोकुल की ओर रवाना हो गया । कृष्ण को गोकुल में छोड़कर वह वहां से विदा ले शौर्यपुर चला गया । बात फैलते देर नहीं लगती । सर्वत्र यह प्रचार हो गया कि नन्द के पुत्र ने शा धनुष को चढ़ा दिया । ज्यों ही यह सुना, कंस के प्राण सूख गये । उसे बड़ा विषाद हुआ । महल - युद्ध का आयोजन स्थिति ऐसी बन चुकी थी कि प्रत्यक्ष रूप में कंस कुछ कर नहीं सकता था, पर, उसने गुप्त रूप में कृष्ण को नष्ट करने की योजना बनाई । उसने सर्वत्र घोषणा करवाई कि शार्ङ्गधनुष का महोत्सव आयोजित होगा, साथ ही साथ बाहु-युद्ध का भी - मल्ल युद्ध का भी कार्यक्रम रहेगा। सभी मल्लगण इस आयोजन में भाग लें । वसुदेव समझ गया कि कंस की इस आयोजन के पीछे कोई छलपूर्ण, प्रपंचपूर्ण योजना है | उसने अपने सभी बड़े भाइयों तथा अक्रूर आदि पुत्रों को गुप्त रूप में अपना संदेश वाहक भेजकर मथुरा बुलाया । वे यथा समय मथुरा पहुँचे । कंस ने सभी समागत यादवों का समुचित आदर-सत्कार किया । समारोह का, मल्ल-युद्ध का समाचार व्रज में भी प्रसूत हुआ । कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलगम से कहा- "तात ! हम भी मथुरा चलें, उत्सव देखें । कृष्ण का विनत एवं शालीन भाव बलराम ने अपने छोटे भाई की भावना को हृदयं गर्म किया । मथुरा चलना स्वीकार किया । उसने यशोदा को नहाने के लिए जल तैयार करने को कहा । यशोदा से प्रमाद हो गया । उसने बलराम की बात की ओर ध्यान नहीं दिया । बलराम ने कुछ देर प्रतीक्षा की । जब जल की व्यवस्था नहीं हुई तो उसका अन्तः स्थित स्वामि-भाव जागरित हो गया । क्रोध से उसकी त्योरियाँ चढ़ गई । वह रूखे स्वर में बोला - " यशोदा ! क्या तुम भूल गई हो, वास्तव में तुम एक दासी हो । हमारे आदेश पालन में इतना विलम्ब कर रही हो, ऐसा क्यों ? उसके श्रीकृष्ण ने ज्यों ही दासी शब्द सुना, उसे बहुत कष्ट हुआ। वह शब्द बाण की ज्यों हृदय में चुभ गया । उसका मुख कुम्हला गया । यशोदा भी एकाएक अवाक् रह गई । उसको सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उसे कभी ये शब्द भी सुनने को मिल सकते हैं। अपने पुत्र के समवयस्क बलराम के एक ही शब्द से यशोदा के अन्तरतम में स्वामि-सेवकसम्बन्ध का भाव उबुद्ध हो गया वास्तव में उसे यह विस्मृत ही हो गया था कि कृष्ण उसके स्वामी का आत्मज है । यशोदा इस ऊहापोह में मानो खो गई । । बलराम ने कृष्ण से कहा - "आओ, यमुना में नहाने चलें ।" कृष्ण अपने बड़े भाई के पीछे पीछे चलने तो लगा, पर, उसके मन में उत्साह नहीं था । उसका हृदय खिन्न था । दोनों भाई यमुना तट पर पहुँचे । बलराम ने कृष्ण का उदास चेहरा देखा तो पूछा - "भैया तुम खिन्न क्यों हो ?" कृष्ण - "आप मेरी मां को दासी शब्द द्वारा सम्बोधित करें, क्या मैं खिन्न नहीं होऊं ?" बलराम ने अपने अनुज कृष्ण को उदासीनता का कारण समझ लिया। उसने कृष्ण को उसके जन्म से लेकर अब तक के सारे वृत्तान्त से अवगत कराया। उसके पूर्वोत्पन्न छ: Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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